Tuesday, December 21, 2010

4 नहीं, बस 2 ही आंखें

' मिस्टर चश्मुद्दीन' को यों तो चश्मे से कोई खास दिक्कत नहीं थी, लेकिन जब कभी ब्लूलाइन में चढ़ने की बारी आती या किसी से झगड़ा हो जाता या फिर आर्मी, एयर फोर्स का कोई फिजिकल टेस्ट पास करना होता, तो जरूर उन्हें अपनी ये दो एक्स्ट्रा आंखें दुश्मन दिखाई देतीं। आखिर 'मिस्टर चश्मुद्दीन' ने चश्मे से छुटकारा पाने का फैसला किया और सर्जरी कराकर अपनी इन दो एक्स्ट्रा आंखों को बाय-बाय कह दिया। चश्मा हटाने के कौन-कौन से तरीके इन दिनों उपलब्ध हैं? इन पर कितना खर्च आता है और इनमें रिस्क क्या हैं? ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स की मदद से तलाशे प्रभात गौड़ ने :

हमारी आंखें
चश्मा हटाने के बारे में जानने से पहले हमें यह समझना होगा कि आंख काम कैसे करती है और नजर कैसे कमजोर होती है।

कैसे काम करती है आंख : आंख जब किसी चीज को देखती है तो उस चीज से रिफ्लेक्ट होनेवाली रोशनी आंख की कॉनिर्या के पीछे मौजूद नैचरल लेंस से गुजरकर रेटिना पर फोकस होती है। रेटिना नर्व्स का बना होता है और सामान्य आंख में इसी पर आकर उस चीज की इमेज बनती है। इसके बाद ये र्नव्स उस इमेज के संकेत दिमाग को भेज देती हैं और दिमाग चीज को पहचान लेता है।

नॉर्मल आंख : जब किसी चीज की इमेज सीधे रेटिना पर बनती है, तो हम उस चीज को साफ-साफ देख पाते हैं और माना जाता है कि नजर ठीक है।

मायोपिया या निकट दृष्टि दोष : जब कभी चीज की इमेज रेटिना पर न बनकर, उससे पहले ही बन जाती है तो चीज धुंधला दिखाई देने लगती हैं। इस स्थिति को मायोपिया कहा जाता है। इसमें आमतौर पर दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं। चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस लगाकर इस स्थिति में सुधार किया जाता है। मायोपिया कई मामलों में शुरुआती छोटी उम्र में भी हो सकता है। यानी 6 साल के आसपास भी मायोपिया आ सकता है।

चश्मा हटाने के तरीके

कॉन्टैक्ट लेंस
चश्मा हटाने के लिए कॉन्टैक्ट लेंस का ऑप्शन काफी पुराना है, जिसमें किसी सर्जरी की जरूरत नहीं होती। बेहद पतली प्लास्टिक के बने कॉन्टैक्ट लेंस आंख की पुतली पर मरीज खुद ही लगा लेता है और रात को सोते वक्त उन्हें उतार देता है। ये लेंस कर्वी होते हैं और आंख की पुतली पर आसानी से फिट हो जाते हैं। कितने नंबर का लेंस लगाना है, कैसे लगाना है और देखभाल कैसे करनी है, ये सब बातें डॉक्टर मरीज को समझा देते हैं। बाहर से देखकर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता कि आंखों में लेंस लगे हैं या नहीं।

कॉन्टैक्ट लेंस दो तरह के होते हैं - रिजिड और सॉफ्ट। जिस लेंस की जितनी ऑक्सिजन परमिएबिलिटी (अपने अंदर से ऑक्सिजन को पास होने देने की क्षमता) होगी, वह उतनी ही अच्छा होगा।

कॉन्टैक्ट लेंस के मामले में सबसे महत्वपूर्ण है इसकी देखभाल। इन्हें साफ, सूखा और इन्फेक्शन से बचा कर रखना जरूरी है। कभी बाहर की चीजें और कभी आंख के आंसुओं आदि की वजह से कॉन्टैक्ट लेंस पर कुछ जमा हो जाता है। ऐसे में लेंसों को पहनने से पहले और निकालने के बाद हाथ की हथेली पर रखकर उनके साथ दिए गए सल्यूशन से साफ करना जरूरी होता है। सल्यूशन नहीं है, तो लेंस को पानी आदि से साफ करने की कोशिश न करें। बिना सल्यूशन के लेंस खराब हो सकता है। सल्यूशन आपके पास होना ही चाहिए।

कॉन्टैक्ट लेंस लगाने के शुरुआती दिनों में थोड़ी दिक्कत हो सकती है, लेकिन आदत पड़ जाने पर इनका पता भी नहीं चलता।

एक बार लेंस लेने के बाद डॉक्टर से रुटीन चेकअप कराते रहना चाहिए। डॉक्टर की सलाह के मुताबिक इन लेंसों को बदलते भी रहना चाहिए।

जिन लोगों की आंखें ड्राई रहती हैं या ज्यादा सेंसिटिव हैं या फिर किसी तरह की कोई एलर्जी है, उन्हें कॉन्टैक्ट लेंस पहनने की सलाह नहीं दी जाती।

अगर साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए और डॉक्टर के कहे मुताबिक लेंस का इस्तेमाल किया जाए तो कॉन्टैक्ट लेंसों का कोई रिस्क नहीं है।

स्विमिंग करते वक्त कॉन्टैक्ट लेंस नहीं लगाने चाहिए। मेकअप करते और उतारते वक्त कोशिश करें कि लेंस न पहने हों।

लेंस को हथेली पर रखकर सल्यूशन की मदद से रोजाना साफ करना जरूरी है। जब पहनें, तब भी साफ करें और जब निकालें, तब भी साफ करके ही रखें। अगर हर महीने लेंस बदल रहे हैं, तब भी रोजाना सफाई जरूरी है।

कुछ खास स्थितियों में ही डॉक्टर छोटे बच्चों को कॉन्टैक्ट लेंस बताते हैं, वरना जब तक बच्चे लेंस की देखभाल करने लायक न हो जाएं, तब तक उन्हें लेंस लगाने की सलाह नहीं दी जाती।

ऐसा कभी नहीं होता कि लेंस आंख में खो जाए या उससे आंख को कोई नुकसान हो। कई बार यह आंख में सही जगह से हट जाता है। ऐसे में आंख को बंद करें और धीरे-धीरे पुतली को हिलाएं। लेंस अपने आप अपनी जगह आ जाएगा।

कॉन्टैक्ट लेंस यूज करने वालों को अपने साथ चश्मा भी रखना चाहिए। आप जब चाहें, चश्मा लगा सकते हैं और जब चाहें, लेंस लगा सकते हैं।

सर्जरी
चश्मा हटाने के लिए आमतौर पर तीन-चार तरह के ऑपरेशन किए जाते हैं। कुछ साल पहले तक रेडियल किरटोटमी ऑपरेशन किया जाता था, लेकिन आजकल यह नहीं किया जाता। इससे ज्यादा लेटेस्ट तकनीक अब आ गई हैं। हम यहां चार तरह की सर्जरी की बात करेंगे। इन सभी में विजन 6/6 (परफेक्ट विजन) आ जाता है, लेकिन सबकी क्वॉलिटी अलग-अलग है। नंबर चाहे प्लस का हो या फिर माइनस का या फिर दोनों, सर्जरी के इन तरीकों से सभी तरह के चश्मे हटाए जा सकते हैं यानी मायोपिया और हाइपरोपिया दोनों ही स्थितियों को इन तरीकों से अच्छा किया जा सकता है।

कुछ में सर्जरी के बाद कुछ समस्याएं हो सकती हैं, तो कुछ एक निश्चित नंबर से ज्यादा का चश्मा हटाने में कामयाब नहीं हैं। ऐसे में डॉक्टर आंख की पूरी जांच करने के बाद ही यह सही सही-सही बता पाते हैं कि आपके लिए कौन-सा तरीका बेहतर है।

कौन करा सकता है सर्जरी
जिन लोगों की उम्र 18 साल से ज्यादा है और उनके चश्मे का नंबर कम-से-कम एक साल से बदला नहीं है, वे लेसिक सर्जरी करा सकते हैं।

अगर किसी शख्स की उम्र 18 साल से ज्यादा है लेकिन उसका नंबर स्थायी नहीं हुआ है, तो उसकी सर्जरी नहीं की जाती। सर्जरी के लिए एक साल से नंबर का स्थायी होना जरूरी है।

जिन लोगों का कॉर्निया पतला है, उन्हें ऑपरेशन की सलाह आमतौर पर नहीं दी जाती।

गर्भवती महिलाओं का भी ऑपरेशन नहीं किया जाता।

कितनी तरह की सर्जरी

सिंपल लेसिक
सिंपल लेसिक सर्जरी को पहले यूज किया जाता था, लेकिन अब डॉक्टर इसका इस्तेमाल नहीं करते। वजह यह है कि ऑपरेशन के बाद इसमें काफी जटिलताएं होने की आशंका बनी रहती है, मसलन आंखें चुंधिया जाना आदि। हालांकि इस तरीके से ऑपरेशन करने के बाद चश्मा पूरी तरह हट जाता है और नजर क्लियर हो जाती है। जहां तक खर्च का सवाल है, तो इसमें दोनों आंखों के ऑपरेशन का खर्च करीब 20 हजार रुपये आता है।

सी-लेसिक
इसे कस्टमाइज्ड लेसिक भी कहा जाता है। चश्मा हटाने के लिए किए जानेवाले ज्यादातर ऑपरेशन आजकल इसी तकनीक से किए जा रहे हैं। सिंपल लेसिक कराने के बाद आनेवाली तमाम दिक्कतें इसमें नहीं होतीं। इसे रेडीमेड और टेलरमेड शर्ट के उदाहरण से समझ सकते हैं - मतलब सिंपल लेसिक अगर रेडीमेड शर्ट है तो सी-लेसिक टेलरमेड शर्ट है। सिंपल लेसिक में पहले से बने एक प्रोग्राम के जरिए आंख का ऑपरेशन किया जाता है, जबकि सी-लेसिक में आपकी आंख के साइज के हिसाब से पूरा प्रोग्राम बनाया जाता है। कहने का मतलब हुआ कि सी लेसिक में आंख विशेष के हिसाब से ऑपरेशन किया जाता है, इसलिए यह ज्यादा सटीक है। जहां तक ऑपरेशन के बाद की आनेवाली दिक्कतों की बात है तो सी-लेसिक में वे भी बेहद कम हो जाती हैं। यह सिंपल लेसिक के मुकाबले ज्यादा सेफ और बेहतर है। खर्च दोनों आंखों का लगभग 30 हजार रुपये आता है।

तरीका : जिस दिन ऑपरेशन किया जाता है, उस दिन मरीज को नॉर्मल रहने की सलाह दी जाती है। इस ऑपरेशन में दो से तीन मिनट का वक्त लगता है और उसी दिन मरीज घर जा सकता है। ऑपरेशन करने से पहले डॉक्टर आंख की पूरी जांच करते हैं और उसके बाद तय करते हैं कि ऑपरेशन किया जाना चाहिए या नहीं। ऑपरेशन शुरू होने से पहले आंख को एक आई-ड्रॉप की मदद से सुन्न (ऐनस्थीजिआ) किया जाता है। इसके बाद मरीज को कमर के बल लेटने को कहा जाता है और आंख पर पड़ रही एक टिमटिमाती लाइट को देखने को कहा जाता है। अब एक स्पेशल डिवाइस माइक्रोकिरेटोम की मदद से आंख के कॉनिर्या पर कट लगाया जाता है और आंख की झिल्ली को उठा दिया जाता है। इस झिल्ली का एक हिस्सा आंख से जुड़ा रहता है। अब पहले से तैयार एक कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए इस झिल्ली के नीचे लेजर बीम डाली जाती हैं। लेजर बीम कितनी देर के लिए डाली जाएगी, यह डॉक्टर पहले की गई आंख की जांच के आधार पर तय कर लेते हैं। लेजर बीम डल जाने के बाद झिल्ली को वापस कॉनिर्या पर लगा दिया जाता है और ऑपरेशन पूरा हो जाता है। यह झिल्ली एक-दो दिन में खुद ही कॉनिर्या के साथ जुड़ जाती है और आंख नॉर्मल हो जाती है। मरीज उसी दिन अपने घर जा सकता है। टांके या दर्द जैसी कोई शिकायत नहीं होती। एक या दो दिन के बाद मरीज अपने सामान्य कामकाज पर लौट सकता है। कुछ लोग ऑपरेशन के ठीक बाद रोशनी लौटने का अनुभव कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर में सही विजन आने में एक या दिन का समय लग जाता है।

बाद में भी रखरखाव जरूरी : ऑपरेशन के बाद दो से तीन दिन तक आराम करना होता है और उसके बाद मरीज नॉर्मल काम पर लौट सकता है। स्विमिंग, मेकअप आदि से कुछ हफ्ते का परहेज करना होगा। जो बदलाव कॉर्निया में किया गया है, वह स्थायी है इसलिए नंबर बढ़ने या चश्मा दोबारा लगने की भी कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन कुछ और वजहों मसलन डायबीटीज या उम्र बढ़ने के साथ चश्मा लग जाए, तो बात अलग है।

ब्लेड-फ्री लेसिक या आई-लेसिक
सर्जरी की मदद से चश्मा हटाने का यह लेटेस्ट तरीका है। सिंपल लेसिक और सी-लेसिक में कॉर्निया पर कट लगाने के लिए एक माइक्रोकिरेटोम नाम के डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ब्लेड-फ्री लेसिक में इस कट को भी लेसर की मदद से ही लगाया जाता है। बाकी सर्जरी का तरीका सी-लेसिक जैसा ही होता है। अगर पावर ज्यादा है, कॉर्निया बेहद पतला है, तो ब्लेड-फ्री लेसिक कराने की सलाह दी जाती है। वैसे, ऐसे लोगों को इसे ही कराना चाहिए, जिन्हें एकदम परफेक्ट विजन चाहिए मसलन स्पोर्ट्समैन, शूटर आदि। दोनों आंखों के ऑपरेशन का खर्च 85 हजार रुपये तक आ जाता है। आई-लेसिक सर्जरी में शुरुआत के दिनों में कुछ दिक्कतें हो सकती हैं, मसलन आंख के सफेद हिस्से पर लाल धब्बे, जो दो से तीन हफ्ते में खत्म हो जाते हैं। आंखों में थोड़ा सूखापन हो सकता है और कम रोशनी में देखने में कुछ दिक्कत हो सकती है। कुछ समय बाद ये दिक्कतें अपने आप दूर हो जाती हैं।

लेंस इंप्लांटेशन यानी ICL
अगर चश्मे का नंबर माइनस 12 से ज्यादा है और कॉर्निया इतना पतला है कि आई-लेसिक भी नहीं हो सकता है, तो डॉक्टर चश्मा हटाने के लिए लेंस इंप्लांटेशन तकनीक का यूज करते हैं। इसमें आंख के अंदर इंप्लांटेबल कॉन्टैक्ट लेंस (आईसीएल) लगा दिया जाता है। आईसीएल बेहद पतला, फोल्डेबल लेंस होता है, जिसे कॉनिर्या पर कट लगाकर आंख के अंदर डाला जाता है। जिस मिकेनिजम पर कॉन्टैक्ट लेंस काम करते हैं, यह लेंस भी उसी तरह काम करता है। फर्क बस इतना है कि इसे आंख में पुतली (आइरिस) के पीछे और आंख के नेचरल लेंस के आगे फिट कर दिया जाता है, जबकि कॉन्टैक्ट लेंस को पुतली के ऊपर लगाया जाता है। इसमें एक बार में एक ही आंख का ऑपरेशन किया जाता है। पूरी प्रक्रिया में लगते हैं 30 मिनट और दूसरी आंख का ऑपरेशन कम-से-कम एक हफ्ते के बाद किया जाता है। ऑपरेशन होने के बाद मरीज उसी दिन घर जा सकता है और दो-तीन दिन के बाद ही नॉर्मल रुटीन पर आ सकता है।

नजर बेहतर बनाने के दूसरे तरीके

होम्योपैथी
होम्योपैथी में आमतौर पर ऐसे दावे नहीं किए जाते कि इससे मायोपिया (दूर की नजर कमजोर होना) का नंबर हट सकता है, फिर भी अगर नंबर कम है और समय रहते दवाएं लेनी शुरू कर दी जाएं तो होम्योपैथिक दवाएं नजर को बेहतर बनाने और चश्मे के नंबर को कम करने या टिकाए रखने में बहुत कारगर हैं।

चश्मे का नंबर कम करने के लिए फाइसोस्टिगमा 6 ( Physostigma ) या रस टॉक्स 6 ( Rhus.Tox ) की चार-चार गोली दिन में तीन बार लेने लें।

कई बार आंखों की मसल्स कमजोर हो जाने की वजह से भी नजर कमजोर होती है। अगर ऐसी स्थिति है तो मरीज को जेलसीमियम 6 ( Gelsemium ) या बेलाडोना 6 ( Belladonna ) की चार-चार गोली दिन में तीन बार लेनी चाहिए।

अगर चोट आदि के बाद नजर कमजोर हुई हो तो आर्निका 6 ( Arnica ) या बेलिस 6 ( Belles) की चार-चार गोली दिन में तीन बार लेनी चाहिए।

नोट : चूंकि यह इलाज लंबा चलता है, इसलिए ये सभी दवाएं कम पोटेंसी की ही दी जानी चाहिए। वैसे कोई भी दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर कर लें।

आयुर्वेद
आयुर्वेद में भी मायोपिया के केस का चश्मा पूरी तरह हटाने के केस न के बराबर मिलते हैं, लेकिन आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए आयुवेर्द में काफी कुछ है। इन दवाओं और नुस्खों के काफी अच्छे रिजल्ट भी देखने को मिले हैं।

खाने में दूध, आंवला, गाजर, पपीता, संतरा और अंकुरित अनाज जरूर शामिल करें।

मां बच्चे को अपना दूध अच्छी तरह पिलाती है तो बच्चे की नजर कमजोर होने के आसार कम हो जाते हैं।

खाना खाने के बाद आधा चम्मच भुनी सौंफ और मिश्री को चबाकर खाने से आंखों की परेशानियां नहीं होतीं।

आंखों की रोशनी बढ़ाने और आंखों की दूसरी दिक्कतों के लिए आयुवेर्द में दो दवाओं का यूज किया जाता है। ये हैं त्रिफला घृत और सप्तामृत लौह। इन दवाओं को सेवन वैद्य की सलाह से करें। ये दवाएं बचाव के तौर पर नहीं ली जातीं। बीमारी होने पर डॉक्टर की सलाह से ही इन्हें लेना चाहिए। चश्मे का नंबर लगातार बढ़ रहा है तो ये दवाएं कारगर हैं।

एक बूंद शहद में एक बूंद प्याज का रस मिलाकर हथेली पर रगड़ लें। सोने से पहले आंखों में काजल की तरह लगाएं।

खाने के बाद गीले हाथों को दोनों आंखों पर फेरें।

हफ्ते में दो दिन पैर के तलुए और सिर के बीचोबीच तेल की मालिश करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

एक चम्मच गाय का घी, आधा चम्मच शक्कर और दो काली मिर्च का चूर्ण मिला लें। इसे रोज सुबह खाली पेट लें। बच्चों की आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए बहुत बढि़या नुस्खा है।

योग
जिन लोगों की नजर कमजोर है, उन्हें नीचे दी गई यौगिक क्रियाओं को करना चाहिए। इन क्रियाओं को अगर सामान्य नजर वाले लोग भी नियमित करें तो उनकी आंखों की रोशनी कमजोर नहीं होगी। सलाह यही है कि कोई भी क्रिया योग विशेषज्ञ से सीखकर ही करनी चाहिए।

आंखों के यौगिक सूक्ष्म व्यायाम (नेत्र-शक्ति विकासक क्रियाएं) नियमित करें। इसमें क्रमश: आंखों को ऊपर-नीचे, दायें-बायें घुमाएं। इसके बाद दायें से बायें और बायें से दायें गोलाकार घुमाएं। हर क्रिया पांच से सात बार कर लें।

सूर्य नमस्कार 6 से 12 बार तक कर सकते हैं।

कपालभाति, भस्त्रिका, अनुलोम विलोम, भ्रामरी और उद्गीत प्राणायाम (ओम जाप) खासतौर से फायदा पहुंचाते हैं।

शुद्धि क्रियाओं में जलनेति, दुग्धनेति और घृतनेति कुछ दिन तक नियमित करने से नेत्र ज्योति में चमत्कारिक परिणाम मिलते हैं। इन क्रियाओं को किसी योग विशेषज्ञ से सीखकर ही करें।

ये योगासन आंखों की रोशनी बढ़ाते हैं : सर्वांगासन, मत्स्यासन, पश्चिमोत्तानासन, मंडूकासन, शशांकासन और सुप्तवज्रासन।

शुद्ध शहद या गुलाब अर्क आंखों में नियमित डालने से भी नेत्र ज्योति बढ़ती है।

त्रिफला को रात को भिगोकर रख दें। सुबह उसके जल को छान लें और उससे आंखें धोएं।

बच्चों को छह साल की उम्र के बाद योग करवाया जा सकता है, लेकिन आंखों की सूक्ष्म क्रियाएं छह साल से पहले भी शुरू कराई जा सकती हैं।

Thursday, December 9, 2010

राजनीति में‘भोर’की आहट‘भारतीय गरीब हैं, पर भारत गरीब देश नहीं है’



अखबारों की खबरें, अगर सही हैं, तो बिहार की राजनीति में एक नयी संभावना की आहट है.बिहार से अधिक, भारत की दरुगध देती राजनीति के समानांतर, बिहार से ही पूरे मुल्क के लिए एक उम्मीद भरी सुबह की शुरुआत की तैयार पृष्ठभूमि के संकेत. बिहार, जो पूरे देश में व्यंग्य, हास्य और कटु बातों का पर्याय था, वही देश की राजनीति मेंमानकबनने की उम्मीद जगा रहा है.

अगर यह हो गया, तो यह मुहावरा नये सिरे से लिखा जायेगा, कि बंगाल, जो आज सोचता है, देश कल. हालांकि अंगरेजों के जमाने का यह कथन, बहुत पहले अपना रेलिवेंस (प्रासंगिकता) खो चुका है.एक नयी शुरुआत के संकेत कहां से है?इन खबरों में!(1) बंद हो सकता है, एमएलए फ़ंड?(2) भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग.(3) लोक सेवा पाने का हक.(4) सासंद-विधायक देंगे संपत्ति का ब्योरा.

एमपी या एमएलए फ़ंड
, भारतीय राजनीति की एक गंभीर बीमारी (भ्रष्टाचार का कैंसर) का सबसे दागदार प्रतीक है. देश में कहीं चले जाइए, जनता की लोक मान्यता है कि खांटी ईमानदार भी घर बैठे-बैठे 20 फ़ीसदी, इस कोष से पाते हैं. यह गलत है. आज भी यह संवाददाता, अनेक ईमानदार राजनेताओं की सूचना रखता है, जो इस फ़ंड से एक धेला भी नहीं छूते. राजनीति मेंभोर..हालांकि ऐसे लोग अब राजनीति में अपवाद हैं.

पर मार्केटिंग के इस दौर में माना जाता है कि
परसेप्शन इज रियलिटी(बोध या धारणा ही सच है). यह मान लिया गया है कि एमपी-एमएलए फ़ंड, भ्रष्टाचार की संस्कृति का स्र्ोत है. याद करिए, इसकी शुरुआत? पूत के पांव पालने में ही पहचाने जाते हैं? नरसिंह राव की सरकार को लोकसभा में बहुमत सिद्ध करना था.

1991-1996 का दौर. पहली बार तब सांसद घूस कांड हुआ. सरकार बचाने के लिए सांसदों की खरीद-फ़रोख्त की पहली घटना, भारतीय लोकतंत्र में.उसी सरकार के मौलिक चिंतन या सांसदों को खुश रखने की योजना से ही इसकी शुरूआत.आज झारखंड में एक विधायक तीन करोड़ तक खर्च कर सकता है. विधायक फ़ंड से. पहले दो करोड़ था, मधु कोड़ा कार्यकाल में एक करोड़ और बढ़ा. झारखंड की राजनीति के स्तर बताने की जरूरत नहीं.

इस सांसद-विधायक फ़ंड ने
, राजनीति के सतीत्व (ईमानदारी) पर सवाल उठा दिया है? इसने पवित्र और धवल राजनीति के चादर पर सबसे गहरा दाग छोड़ा है. इसे नकारते सभी हैं. कुछ ही दिनों पहले लालू जी ने भी कहा था कि एमएलए फ़ंड से अब कार्यकर्ता नहीं, ठेकेदार उपजते हैं. पिछले 15 वर्षो में केंद्र से लेकर अनेक राज्यों के ईमानदार राजनेता (सभी दलों के) इसे कोसते रहे हैं.

ठेठ बनारसी लफ्ज में कहें
, तो इसे कबाहट (सिरदर्द देनेवाली चीज) मानते रहे हैं, पर कोई साहस नहीं कर सका, इसे हटाने या इसके स्वरूप को बदलने के लिए? बिहार की राजनीति में इसे हटाने यह इसके स्वरूप को बदलने की सुगबुगाहट है, यह उम्मीद पैदा करनेवाला कदम होगा. इस अर्थ में बिहार की राजनीति, देश को राह दिखायेगी. जो राजनीति व्यवसाय-धंधा का प्रतीक बन गयी है, उसकी साख लौटाने का यह प्रस्थान (मानक) बिंदु होगा.

अंतत: राजनीति ही देश या समाज को शिखर पर पहुंचा सकती है
, कोई और विधा नहीं. उस राजनीति का चीरहरण करने में इसफ़ंड योजना की कारगर भूमिका रही है. इससे दलों में कार्यकर्ताओं का पनपना-जनमना बंद हो गया. ठेकेदार बननेवालों की स्पर्धा शुरू हो गयी. बिचौलिये या ठेकेदार, नयी राजनीतिक संस्कृति के जन्मदाता हो गये. ठेकेदार नाराज, तो ईमानदार राजनेता के भविष्य पर प्रश्न चि: लगने लगा? यह योजना लांछन की प्रतीक बन गयी.

इस लांछन से मुक्ति की पहल
, बिहार से हो, तो एहसास करिए देश की मौजूदा राजनीति पर इसका क्या दबाव होगा? मनोवैज्ञानिक, नैतिक और मुद्दे की गंभीरता को लेकर. बिहार ने इसे खत्म करने की पहल की, तो पूरे देश की राजनीति में यह निर्णायक सवाल बनेगा. कारण जनता में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आग है.

विस्फ़ोटक आक्रोश है. नहीं समझ आये
, तो गैर राजनीतिक बाबा रामदेव की सभाओं की भीड़ जाकर देखें. उसके मूड को परखें. इस मुद्दे पर जनता एक तरफ़, नेता दूसरी तरफ़. बिहार प्रो-पीपुल कदम उठा कर, देश के सभी दलों को, पूरी राजनीति के मौजूदा व्याकरण को बदलने की पृष्ठभूमि तैयार कर देगा. यह कदम उठानेवाले बिहार के सभी विधायक, बिहार समेत अपने लिए यश और कीर्ति का नया अध्याय लिखेंगे.

राजनीति के इतिहास में बिहार स्मरण किया जायेगा.भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मोरचा खोलने का सरकारी निर्णय भी दूरगामी असर पैदा करनेवाला है. पिछले कुछेक महीनों से एक एसएमएस खूब घूम रहा है.
अंगरेजी में. भावार्थ हैभारतीय गरीब हैं, पर भारत गरीब देश नहीं है, यह कहना है, स्विस बैंक के एक डाइरेक्टर का. उनके अनुसार 280 लाख करोड़ भारतीय मुद्रा, स्विस बैंकों में जमा है.

इसका उपयोग कर
30 वर्षो तक कररहित बजट बन सकता है. 60 करोड़ भारतीयों को इस राशि से नौकरी मिल सकती है. देश के किसी गांव से दिल्ली तक चार लेन की सड़क बन सकती है. हमेशा के लिए 500 सामाजिक योजनाओं को मुफ्त बिजली दी जा सकती है. 60 वर्षो तक हर नागरिक को 2000 प्रतिमाह भुगतान किया जा सकता है.

वर्ल्ड बैंक
, आइएमएफ़ लोन की जरूरत नहीं. सोचिए, किस तरह हमारा धन, धनी राजनेताओं द्वारा कैद (ब्लाक) है. भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ़ हमारा पूरा फ़र्ज है. इस एमएमएस (संदेश) को इतना भेजें कि पूरा भारत पढ़े.इस एमएमएस की शुरुआत कब से हुई? नवंबर 2010 में एक रिपोर्ट जारी हुई. ग्लोबल फ़ाइनेंशियल इंटीग्रिटी (सपोर्टेड बाइ फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन). तैयार करनेवाले हैं देवकर. रिपोर्ट का नाम है, द ड्राइवर्स एंड डायनामिक्स ऑफ़ इलिसिट फ़ाइनेंशियल फ्लोज फ्राम इंडिया 1948 टू 2008.
इस रपट की पांच बातों पर गौर करें
1.ग्लोबल फ़ाइनेंशियल इंटीग्रिटी की रिपोर्ट के मुताबिक 1948-2008 के बीच भारत का विदेशी बैंको में कुल 20 लाख करोड़ रुपये कालेधन के रूप में जमा है. रिपोर्ट के मुताबिक कालेधन का प्रवाह 11.7 फ़ीसदी सालाना का दर से बढ़ा है.
2. यह रकम 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में हुए नुकसान का 12 गुणा अधिक है.
3. स्विस बैंक एसोशिएशन 2008 की रिपोर्ट के अनुसार भारतीयों के स्विस बैंक में 66,000 अरब रुपये(1500 बिलियन डालर) जमा है. रूस के 470 बिलियन डालर, ब्रिटेन के 390 बिलियन, यूक्रेन के 100 बिलियन, जबकि अन्य देशों का कुल 300 बिलियन डालर है.
4. कार एंड कार्टराइट स्मिथ की 2008 की रिपोर्ट के मुताबिक 2002-06 के दौरान कालेधन के कारण भारत को सालाना 23.7-27.3 बिलियन डालर का नुकसान उठाना पडा है.
5. आइएमएफ़ की रिपोर्ट के मुताबिक 2002-06 के दौरान भारत को कालेधन के कारण 16 बिलियन डॉलर सालाना का नुकसान हुआ है.इस रिपोर्ट को हर भारतीय को पढ़ना चाहिए.

कैसे वर्ष
1948 से 2008 तक भारत से कालाधन बाहर गया? काले अंग्रेजों ने कैसे भारतीयों को लूटा? चंगेज, नादिरशाह या बाहरी लुटेरों से भी अधिक क्रूरता और बेदर्दी से? इसी तरह जैसे 2जी प्रकरण के सभी टेपों को पुस्तकाकार के रूप में छाप कर किसी देशभक्त को हर भारतीय को बंटवा देना चाहिए, ताकि हर भारतीय मीडिया से लेकर शासक वर्ग के हर अंग (नेता, अफ़सर, उद्यमी) की हकीकत समझ सके. लॉबिस्ट सांसदों या राजनीति का असली चरित्र खुद पढ़-सुन सके.

यह बताने या याद कराने की जरूरत नहीं कि प्रभात खबर ने कैसे
2009 के लोकसभा चुनावों में स्विस बैंक में जमा भारतीय काला धन का मुद्दा उठाया था. अनेक तथ्यों के साथ. तब यह देशव्यापी चर्चा का विषय बना, पर फ़िर चुप्पी. अब इस रिपोर्ट ने दुखते रग पर हाथ डाल दी है. सरकार चुप नहीं रह सकती. खबर आयी है कि काले धन के अध्ययन की कमिटी बन रही है.

14 देशों तक इसके पसरे जाल की जांच चलेगी. केंद्र सरकार के ये कदम, टालू लगते हैं. इसलिए बाबा रामदेव की हुंकार पर लोग जग रहे हैं. यह बात भी उठ रही है कि एक तरफ़ भारत का इतना धन बाहर है. दूसरी ओर केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सी.एस.ओ) के आंकड़े के अनुसार हर भारतीय पर 38,000 रुपये का कर्ज है? इस विसंगति का जवाब लोग मांगेंगे? एक नये राजनीतिक स्वर या चिंतन के तहत ही. बिहार की सुगबुहाट मंच बन सकती है.

याद करिए
, जब-जब भ्रष्टाचार का मामला उठा है, जनता एक हुई है.74 आंदोलन, 77 के चुनाव. 1998 में बोफ़ोर्स का प्रकरण. 2जी, कामनवेल्थ घोटाला, आदर्श सोसाइटी प्रकरण वगैरह से देश की राजनीति से बदबू आने लगी है.राडिया प्रकण के खुलासे से रही-सही बातें पूरी हो गयी हैं. इस टेप में कहीं चर्चा है कि एक राष्ट्रीय शासक दल को एक बड़ा घराना, घरेलू (घर की बात) कहता है.बिहार में भ्रष्टाचार नियंत्रण के लिए कानून बना है.

देश के इस परिवेश-माहौल में इस कानून का ईमानदार क्रियान्वयन एक नया माहौल बनायेगा. बिहार में ही नहीं
, देश में भ्रष्टाचार, छल, कपट और षड्यंत्र की राजनीति का बोलबाला है. दिल्ली पूरी तरह इसके गिरफ्त में है.शासन या सत्ता, चाहे जिसका हो. इस भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बिहार की यह पहल, दुनिया की निगाह खींचेगी. पिछले दिनों, बिहार चुनाव परिणाम के बिश्लेषण दुनिया के मशहूर अखबारों में छपे. विख्यात स्तंभकारों ने अंग्रेजी के हर बड़े अखबार में लिखा, बिहार पर.इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी हाल में लिखा.

द टेलिग्राफ़ में. हर बिहारी-झारखंडी को इन लेखों को पढ़ना चाहिए.भारतीय राजनीति में सुधार अब दिल्ली से संभव नहीं. अगर एक राज्य में सुधार हुए, तो उसके देशव्यापी असर होंगे. बिहार यह प्रयोगस्थली बन सकता है. रामचंद्र गुहा भी यह मानते हैं.

कहावत है
सीइंग इज बिलिविंग (देखना ही प्रमाण है). अर्थशास्त्र में एक लफ्ज है, डिमांस्ट्रेटिव इंपैक्ट (नमूने या प्रयोग का असर). फ़र्ज कीजिए कि बिहार के कानून के तहत भ्रष्टाचारियों की संपत्ति जब्त होती है, फ़ास्टट्रैक कोर्ट में ट्रायल होता है, यह सब पूरा देश देखेगा, तो क्या होगा? इसका प्रभाव व दबाव अनंत-असीमित होगा. समाजशास्त्र की नजर में समाज खेमे में बंटेगा,हैव व हैव नाट, फ़िर, भ्रष्ट, बेईमान बनाम ईमानदार के बीच.

साम्यवाद की भाषा में बुर्जुआ बनाम सर्वहारा के बीच. भारतीय राजनीति में जिस तरह गरीबी हटाओ
, मंडल, कमंडल ने ध्रुवीकरण पैदा किया था, उससे भी तीखा, प्रभावी और धारदार मुद्दा है, यह. बिहार के लिए ही नहीं. देश के लिए. शत्र्त यही है कि इसका ईमानदार क्रियान्वयन हो. भारतीय राजनीति में संभावनाओं के नये द्वार खोलनेवाला, यह कानून. हाल मेंद हिंदूके एक लेख में यह बात उभरी कि91 के उदारीकरण के बाद भारत में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है.

ज्वार-भाटा की तरह. बिहार की राजनीति अश्वमेध के घोड़े की भूमिका में सक्रिय भ्रष्टाचार की बाग थाम ले या इस कालिया नाग को नाथने की शुरूआत कर दे
, तो देखिए देश की राजनीति में क्या बदलाव होते हैं? फ़र्ज करिए कि यहां के विधायक, मंत्री, सांसद, अफ़सर हर वर्ष संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा करते हैं, तो इसका क्या असर होगा? कानून तो अब भी है. आयकर का कानून है.

चुनाव आयोग का कानून. पर सही क्रियान्वयन कहां है
? सही अर्थ में बिहार से अगर नयी शुरूआत होती है, तो देश की राजनीति में इसका असर होगा. यह सूचना का युग है. ज्ञान का दौर है. यहां लोकसेवा कानून हो जाये, इन चीजों की सही और ईमानदार शुरूआत हो जाये, तो फ़िर दृश्य दिखेंगे.भारतीय मानस, ईमानदार राजनीति की प्रतीक्षा में है. बाहर और अंदर के खतरों से घिरा है, देश और रहनुमा हैं काजल की कोठरी में? यह स्थिति मुल्क की है. मुल्क नयी राजनीति, नये राजनीतिक मूल्यों और संस्कृति की तलाश में है.बिहार के प्रयोग संभावनाओं से भरे हैं.चाहिए सिर्फ़ सही क्रियान्वयन।

शर
हरिवंश