Sunday, July 29, 2012

एक्स से करना हो पैचअप


क्या आप अपने एक्स को भूल नहीं पा रहे हैं और उसे फिर अपनी जिंदगी में लाना चाहते हैं? तो फिर ये टिप्स आपकी हेल्प करेंगे:


वैसे तो, आपका ब्रेकअप हो चुका है, फिर भी एक्स बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड की याद आती रहती है। कई बार ऐसा भी फील होता है कि वह ज्यादा केयरिंग था और उससे अच्छा कोई और मिल ही नहीं सकता। यही नहीं, आप चाहते हैं कि आपकी रिलेशनशिप फिर से बेहतर हो जाए। ऐसे में, आप इन बातों को ध्यान में रखकर अपनी एक्स रिलेशनशिप को फिर से करंट रिलेशनशिप में बदल सकते हैं:


सोशल साइट्स पर अपडेट
आपकी मुलाकात सोशल साइट्स पर हुई थी और उसके बाद प्यार हुआ। अगर आप उसे फिर से मिस कर रहे हैं और जानना चाहते हैं कि वह इन दिनों क्या कर रहा है, तो आप उसके फेसबुक या फिर ट्विटर पर विजिट करके उसके बारे में अपडेट ले सकते हैं। उससे फिर कम्यूनिकेशन करना चाहते हैं, तो उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज सकते हैं। उसके स्टेट्स थॉट्स को लाइक या कॉमेंट करके भी जता सकते हैं कि आज भी आप उसको मिस करते हैं।


बर्थडे विश
आपने उसके साथ लंबा टाइम स्पेंड किया है। जाहिर है कि उसका बर्थडे भी सेलिब्रेट किया होगा। अब जब वह आपसे दूर जा चुका है, तो बर्थडे पर कार्ड, केक या उसकी फेवरिट चीज भेजकर अहसास दिला सकते हैं कि आज भी आप उसको मिस करते हैं। बता सकते हैं कि उसकी हर चीज आज भी याद है।


मिल जाएं अचानक
आपको पता है कि एक्स की कोई खास जगह है, जहां वह अक्सर जाता है। चाहे वह कोई साइबर कैफे हो या फिर कॉफी कैफे। आप उस जगह पर जाकर अचानक मिल सकते हैं। हो सकता है कि वह आपसे बात न करे या फिर आपको अनदेखा करे, इसके बावजूद उससे बात करें। उसका हालचाल पूछें। फिर अपना नंबर भी दें या कोई अपनी चीज जैसे नोट्स वगैरह दें, ताकि मिलने का सिलसिला बन जाए।


इमोशंस करें यूज
आप दोनों पहले इमोशनली एक-दूसरे से बेहद अटैच थे। यही नहीं, उसने या आपने हर सिचुएशन में एक-दूसरे का साथ दिया था, लेकिन आज स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है। वह अब आपको देखना भी पसंद नहीं करता है तो आप उसे इमोशनली अट्रैक्ट कर सकते हैं। किन कारणों से आप उससे अलग हुए या फिर आपको आज भी उसकी याद आती है बताकर आप उसे फिर अपनी जिंदगी में वापस ला सकते हैं।


फ्रेंड बनें पहले
पहले उसे दोस्त बनाएं। उसे पुरानी बातें याद दिलाएं और महसूस करवाएं कि आप आज भी उसके लिए वहीं फीलिंग्स रखती हैं। हो सकता है कि वह आपकी जिंदगी में फिर लौट आए।


कॉम्प्लिमेंट दें
अगर आपके एक्स ने आपके ब्रेकअप होने के बाद वाकई कोई अच्छा काम किया है, तो आप उसे कॉम्प्लिमेंट जरूर दें। इससे उसे फील होगा कि वाकई आप उसकी हर चीज को नोटिस करती हैं और वह भी आपकी इन बातों से बेहद खुश होगा।


कहें दिल की बात
तमाम कोशिशों के बाद भी, वह आपकी बात समझ नहीं पा रहा, तो उससे दिल की बात साफ-साफ बता दें। इससे उसे अहसास होगा कि आपको उसकी कमी खल रही है और वह आपका साथ फिर चाह सकता है।

Wednesday, July 25, 2012

आदर्श बीवी के बदलें पैमाने

कामकाजी जीवनसाथी के फायदे
हाल ही में मैंने ‘कॉकटेल’ फिल्म देखी। इसका प्लॉट एक आशिक-आवारा टाइप के युवक के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसके समक्ष दो सेक्सी युवतियों में से किसी को चुननेे की मुश्किल चुनौती है। इस फिल्म की पृष्ठभूमि लंदन की है। इसके किरदार नाइटक्लब में झूमते-नाचते हैं, शराब पीते हैं और मौज-मस्ती करते हैं। वे ग्लैमर फोटोग्राफी, ग्राफिक आर्ट और सॉफ्टवेयर डिजाइनिंग जैसे आज के दौर के शानदार कॅरियर विकल्पों से जुड़े हैं। मगर फिर भी आखिर में नायक उसी लडक़ी को अपने लिए चुनता है, जो घर में खाना पकाती है, पारंपरिक परिधान पहनती है, उसकी मां की रजामंदी हासिल कर लेती है और खुशी-खुशी एक आदर्श भारतीय बीवी बनने के लिए तैयार है। यहां तक कि इस मामले में खारिज की गई बिंदास, आत्मनिर्भर कन्या भी खुद को बदलने के लिए तैयार हो जाती है।
हालांकि यह एक फन मूवी है, लेकिन पात्रों के ऐसे चित्रण ने मुझे थोड़ा परेशान कर दिया। जब सफल, मजबूत इरादों वाली महिलाओं को अपने पति के लिए दाल-रोटी पकाने में ही मोक्ष तलाशते हुए दिखाया जाता है तो हम सोच में पड़ जाते हैं कि अपनी लड़कियों के लिए कैसा भारत पेश कर रहे हैं। क्या वास्तव में महिलाओं की बस यही जिंदगी है? क्या उनके लिए गरमागरम चपातियां बनाना ही सबसे अहम काम है? बेशक कई लोग यही कहेंगे कि मैं इसे लेकर इतना परेशान क्यों हो रहा हूं? आखिर यह एक बॉलीवुड फिल्म ही तो है।
दरअसल जब हमारा अत्याधुनिक फॉरवर्ड सिनेमा प्रतिगामी सोच में डूब जाए, तो यह हमारी महिलाओं के लिए ठीक नहीं है। यह इसलिए भी हताशाजनक है, क्योंकि कहीं न कहीं हम भी यह जानते हैं कि समाज में इस तरह का नजरिया मौजूद है। अनेक भारतीय पुरुष (यहां तक कि उच्च-शिक्षित भी) महिलाओं को दो नजरियों से तौलते हैं। उनके लिए एक गर्लफ्रेंड टाइप मटेरियल होती है, तो दूसरी बीवी टाइप। एक के साथ आप पार्टियों में मौज-मस्ती कर सकते हैं, दूसरी को आप घर ले जाते हैं। दृढ़ इरादों वाली गैर-पारंपरिक महिलाओं के प्रति उनके मन में जबरदस्त पूर्वग्रह हैं।
जरा हम दुनिया के दूसरे हिस्सों पर नजर दौड़ाएं। याहू जैसी अग्रणी तकनीकी फर्म और ‘फॉच्र्यून ५००’ कंपनी ने हाल ही में अपने यहां एक नए सीईओ को नियुक्त किया है। यह सीईओ एक महिला है। उनका नाम है मरीसा मेयर। गौरतलब बात यह है कि जब उन्हें नियुक्त किया गया, उस वक्त उन्हें छह माह का गर्भ था और उन्होंने अपने इंटरव्यू में यह बात छुपाई भी नहीं। मरीसा बच्चे की डिलीवरी के वक्त कुछ समय छुट्टी पर रहेंगी और उसके बाद वापस काम पर आ जाएंगी। वह दोनों चीजों को संभाल सकती हैं। यह बहुत खुशी की बात है। मरीसा महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल हैं तथा पुरुषों के लिए भी। मेरे ख्याल से वह किचन में चपातियां तो नहीं बनाती होंगी।
भारतीय पुरुषों को जीवनसाथी के चयन के बारे में अपनी मानसिकता को व्यापक बनाना चाहिए। वे सोलहवीं सदी से चले आ रहे अपने आदर्श महिला के मापदंडों में संशोधन करें। एक पारंपरिक घरेलू पत्नी का होना अच्छी बात है, जो आपके लिए खाना पकाए और घर के सारे काम करे। लेकिन जिंदगी में एक सक्षम, आत्मनिर्भर और कॅरियरोन्मुखी महिला के होने के भी बड़े फायदे हैं।
किसी कॅरियर वुमन के साथ शादी करने का पहला फायदा तो यह है इससे हमें ऐसा पार्टनर मिल जाता है, जिसके साथ हम अपने कॅरियर के बारे में राय-मशविरा कर सकते हैं। कामकाजी महिला किसी गृहिणी के मुकाबले संस्थागत मसलों को बेहतर ढंग से समझ सकती है। ऑफिस की राजनीति से दो-चार होने वाली आपकी अद्र्धांगिनी इसके बारे में आपको बेहतर सलाह दे सकती है। दूसरा फायदा, कामकाजी महिला पैसा कमाकर लाती है, जिससे परिवार के आय के स्रोत भी बढ़ जाते हैं। आज के महंगे अपार्टमेंट्स और अक्सर होने वाली छंटनी के इस दौर में कामकाजी पत्नी आपको एक अच्छा-सा आशियाना खरीदने में मदद कर सकती है और आप अपने वित्त को लेकर ज्यादा सुरक्षित महसूस कर सकते हैं। तीसरा, कामकाजी महिला को दुनियादारी के बारे में ज्यादा पता होता है। जब वह बाहर निकलती है तो इसका मतलब है कि वह वापस घर में कुछ ज्ञान और जानकारी लेकर आएगी, जो परिवार के लिए उपयोगी साबित हो सकती है। कोई हालिया डील हो, निवेश के लिहाज से बेहतरीन म्युचुअल फंड्स की बात, या फिर कोई घूमने जाने के लिए कोई नया ठिकाना- एक कामकाजी महिला इस तमाम मामलों में आपके जीवन में नया रंग भर सकती है। चौथा, कामकाजी महिलाओं के बच्चे भी आत्मनिर्भर होना सीखते हैं। उनकी मां हर छोटी-मोटी चीज के लिए उनके पास नहीं होती, लिहाजा बच्चे खुद चीजें संभालना सीख जाते हैं। आज के इस तीव्र प्रतिस्पद्र्धा के दौर में स्वावलंबी बच्चे नाजों में पलने वाले बच्चों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करेंगे। पांचवां, कामकाजी महिलाओं को जॉब करते हुए एक अलग तरह की तृप्ति का एहसास होता है। ऐसे में उनके जीवन में कहीं ज्यादा संतुष्टि हो सकती है और वे अपनी खुशियों के लिए पति पर ज्यादा निर्भर नहीं होंगी। इससे उनके बीच आपसी सामंजस्य भी बढ़ेगा। बेशक ये सभी फायदे मिल सकते हैं, बशर्ते आदमी अपने पहाड़ जैसे अहं को परे रख दे और महिलाओं को बराबरी का दर्जा दे।
निश्चित तौर पर कामकाजी महिला के साथ रहने की कुछ खामियां भी हैं, लेकिन आज हम जिस आधुनिक युग में रहते हैं, वहां पर चपातियां बनाने वाली दुल्हन लाने से हम उपरोक्त तमाम खूबियों से वंचित रह सकते हैं। मेरी मां ने चालीस साल तक काम किया। मेरी पत्नी एक अंतरराष्ट्रीय बैंक में सीओओ है। इससे मुझे गर्व की अनुभूति होती है। वह मेरे लिए चपातियां नहीं बनाती और मुझे इससे परेशानी भी नहीं है। यदि मेरी पत्नी किचन में अपनी पूरी जिंदगी बिता देती और अपनी प्रतिभा का समुचित इस्तेमाल नहीं करती, तो इससे मुझे कहीं ज्यादा परेशानी होती।
कृपया अपना जीवनसाथी सावधानीपूर्वक चुनें। अपने दिमाग के कपाट खोलें। हमारे मन में सफल महिलाओं को बर्दाश्त करने की भावना न हो, बल्कि हम उन्हें खुले मन से स्वीकारें और उनकी सफलता का जश्न मनाएं। वे हमारे घर-परिवार व हमारे देश को आगे लेकर जाएंगी। इससे हमें भले ही गरमागरम चपातियां कम मिलें, लेकिन एक बेहतर देश जरूर मिलेगा।
shabhar  चेतन भगत
लेखक अंग्रेजी के प्रसिद्ध युवा उपन्यासकार हैं।

Monday, June 4, 2012

हेल्थ ऑफ न करे ऑफिस

Health is most important in line, so careful your any body problem.
 
 
 ऑफिस में काम करने वाले ज्यादातर लोग सात - नौ घंटे का डेस्क जॉब करते हैं , यानी घंटों तक एक ही जगह पर बैठकर काम करते हैं। लगातार एक ही पोजिशन में बैठकर काम करना सेहत के लिहाज से काफी नुकसानदेह है। इससे बचने और नुकसान होने पर सुधार के लिए हमें क्या करना चाहिए , एक्सपर्ट्स से बात करके बता रही हैं प्रियंका सिंह :

ऑफिस में काम करने के दौरान कौन - सा पॉस्चर होना चाहिए , यह मेडिकल साइंस का एक बड़ा अहम सब्जेक्ट है , जिसे अर्गोनॉमिक कहा जाता है। कई देशों में इसकी अलग - से पढ़ाई भी होती है , मसलन ब्रिटेन में पांच साल का अर्गोनॉमिक कोर्स होता है। कंप्यूटर ऑपरेटर , डेस्क जर्नलिस्ट , बैंक प्रफेशनल्स , डॉक्टर , रिसेप्शनिस्ट आदि तमाम ऐसे प्रफेशन हैं , जिनमें एक ही जगह पर बैठकर कंप्यूटर पर लंबे समय तक काम करना होता है। अगर बैठने और काम करने के दौरान सावधानियां नहीं बरती जाएं तो सेहत से जुड़ी कई तकलीफें हो सकती हैं।

हो सकती हैं ये तकलीफें
शरीर के किसी भी हिस्से को अगर एक ही रेंज में बहुत ज्यादा इस्तेमाल करेंगे तो आरएसआई ( रिपिटेटिव स्ट्रेस इंजरी ) हो सकती है , यानी जिस हिस्से का लगातार इस्तेमाल एक ही रेंज में हो रहा है , उसे नुकसान हो सकता है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि कंप्यूटर पर लगातार लंबे समय तक काम करने से उंगलियों , कुहनी आदि का मूवमेंट लगातार एक ही जैसा होता है। इससे इन हिस्सों पर प्रेशर ज्यादा होता है , जिससे दर्द की आशंका बढ़ जाती है। एक ही पोजिशन में लगातार काम करने से कई समस्याएं हो सकती हैं , जैसे कि :

1. सिर दर्द
2. मांसपेशियों में दर्द
3. कमर दर्द
4. गर्दन और कंधों में दर्द
5. स्पॉन्डिलोसिस ( जोड़ों में टूट - फूट )
6. एनक्लोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस ( स्पाइन में सूजन और जकड़न )
7. घुटने में दर्द
8. हाथों में सुन्नी
9. आंखों में ड्राइनेस या स्ट्रेन

लेवल और दूरी बनाए रखें

1. अगर डेस्कटॉप और लैपटॉप , दोनों का ऑप्शन हो तो डेस्कटॉप पर काम करना बेहतर है। डेस्कटॉप की जगह एक तरह से फिक्स्ड रहती है , जिससे आमतौर पर पॉस्चर बेहतर पोजिशन में रहता है। लैपटॉप पर काम करते हुए अक्सर लोग पॉस्चर का ध्यान नहीं रखते।

2. कंप्यूटर और कुर्सी की पोजिशन ऐसी हो कि स्क्रीन पर देखने के लिए झुकना पड़े और ही गर्दन को जबरन ऊपर उठाना पड़े। मॉनिटर की टॉप लाइन आई लेवल के बराबर या हल्का - सा नीचे हो। अगर बाई - फोकल लेंस पहनते हैं तो स्क्रीन थोड़ा और नीचे रखें।

3. कीबोर्ड टेबल के ऊपर रखने की बजाय कीबोर्ड ट्रे में रखें। ध्यान रखें कि कीबोर्ड कुहनी के लेवल या उससे हल्का - सा नीचे हो। माउस को की - बोर्ड के पास ही रखें। अगर माउस दूर रखा है तो शॉर्ट कट की का ज्यादा इस्तेमाल करें। दूर होने से बार - बार हाथ को उठाकर वहां तक ले जाना सही नहीं हैं।

4. काम करते हुए कुहनी और हाथ आर्म रेस्ट पर रखें। इससे कंधे रिलैक्स रहते हैं और उन पर प्रेशर नहीं पड़ता।

5. जब भी टाइप करें , ध्यान रखें कि कुहनी को पूरा सपोर्ट मिले। हाथ हवा में रखकर टाइपिंग करना बिल्कुल गलत है। कुर्सी जितनी टेबल के पास हो , उतना अच्छा है। ऐसे में मॉनिटर को पीछे रखें ताकि आंखों और मॉनिटर के बीच अच्छा फासला बना रहे।

6. टाइपिंग खूब करनी है तो लाइट टच वाला कीबोर्ड बेहतर है। टाइप हमेशा उंगलियों की टिप से करें। हो सकें तो महिलाएं नाखून काटकर रखें , वरना उंगलियों के पोरों में दर्द हो सकता है।

7. काम के दौरान फोन पर लंबी बात करनी है तो स्पीकर फोन रखें या हेड फोन लगाकर बात करें। कान पर फोन लगाकर कंप्यूटर पर काम करें।

8. कागज पर पढ़ने - लिखने का काम करते हैं , तो स्लोपिंग डेस्क का इस्तेमाल करें। इससे तो बहुत झुकना पड़ता है , ही शरीर तनकर बहुत पीछे रहता है।

ब्रेक तो बनता है
लगातार काम करने से शारीरिक बीमारियां होने के चांस तो होते ही हैं , काम करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है। 30 मिनट में एक बार 2-3 मिनट का ब्रेक लें। अगर आधे घंटे में ब्रेक नहीं लेते तो घंटे भर में 5 मिनट का ब्रेक ले सकते हैं। जब भी मुमकिन हो , ऑफिस में छोटे - मोटे कामों के बहाने चलें। मसलन फोन पर ऑर्डर देने की बजाय चाय लेने खुद कैंटीन चले जाएं , पानी की बोतल खुद भर लाएं आदि।

रखें ध्यान

1. जिन्हें दर्द नहीं है लेकिन डेस्क जॉब में हैं और चाहते हैं कि उन्हें कमर दर्द हो , उन्हें रस्सी कूदना , सीढि़यां चढ़ना - उतरना , वॉकिंग , जॉगिंग , रनिंग , स्विमिंग , साइक्लिंग , आदि करना चाहिए। इससे दर्द होने की आशंका कम हो जाएगी।

2. रोजाना स्ट्रेचिंग एक्सर्साइज करें। सुबह पूरी बॉडी को स्ट्रेच करें। ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा खींचें। इससे मसल्स में लचीलापन बना रहता है। फिटनेस के लिए अरोबिक्स ( रनिंग , जॉगिंग , साइक्लिंग , स्विमिंग आदि ) और मजबूती के लिए स्ट्रेंथनिंग एक्सर्साइज ( वेट लिफ्टिंग आदि ) जरूर करें। स्ट्रेचिंग रोजाना करें। हफ्ते में चार दिन अरोबिक्स और बाकी तीन दिन स्ट्रेंथनिंग एक्सर्साइज करें।

दर्द हो जाए तो ...
अगर दर्द हो जाए तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। फौरन ऐसा मुमकिन नहीं है तो क्रढ्ढष्टश्व का फॉर्म्युला अपनाएं।
Rest: आराम करें। ज्यादा घूमें - फिरें नहीं , ही देर तक खड़े रहें।
Ice: एक कपड़े या बैग में बर्फ रखें और दिन में 4-5 बार 10-10 मिनट के लिए दर्द की जगह पर लगाएं।
Compression: घुटने पर क्रेप बैंडेज या नी कैप लगाएं। बैंडेज ज्यादा टाइट या लूज हो।
Elevation: लेटते वक्त पैर के नीचे तकिया रख लें ताकि घुटना थोड़ा ऊंचा रहे।
एक - दो दिन बतौर पेनकिलर क्रोसिन ले सकते हैं। साथ में वॉलिनी , मूव , वॉवेरन जेल आदि किसी दर्दनिवारक बाम या जेल से हल्के हाथ से मालिश कर सकते हैं।

आंखें हैं अनमोल , आंखों को आराम जरूरी

1. कंप्यूटर और आंखों के बीच में एक मीटर का फासला होना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता तो भी मॉनिटर और आंखों के बीच डेढ़ - दो फुट का फासला जरूर होना चाहिए।

2. कंप्यूटर की स्क्रीन का टॉप वाला हिस्सा आई लेवल की ऊंचाई पर होना चाहिए। इससे गर्दन और कमर पर दबाव नहीं पड़ता।

3. फॉन्ट साइज ठीक ( थोड़ा बड़ा ) होना चाहिए। स्क्रीन की चमक भी ठीक होनी चाहिए। स्क्रीन पर ऐंटी ग्लेअर ( चौंधरहित ) शीट या ऐंटी ग्लेयर ग्लास भी लगा सकते हैं , हालांकि पुराने स्क्रीनों में ही इनकी जरूरत होती है , फ्लैट स्क्रीन या एलईडी वगैरह में नहीं।

4. मॉनिटर को लगातार देखते नहीं रहें। आंखों का झपकना जरूरी है , वरना आंखों में ड्राइनेस या आई स्ट्रेन हो जाता है। आंखें लाल हो जाती हैं और उनमें खुजली होती है। इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहते हैं।

5. चश्मे का कम - से - कम नंबर भी है तो उसे जरूर लगाएं , 0.25 नंबर भी। पहले से चश्मे का इस्तेमाल करते हैं तो भी चेक कराते रहें कि चश्मे का नंबर बढ़ तो नहीं गया है। साल में एक बार आंखों का चेकअप जरूर कराएं।

6. आंखों में लुब्रिकेशन या थकान दूर करने के लिए इजी टियर्स , रिफ्रेश टियर्स (Refresh Tears), सस्टेन (Systane), टियर्स प्लस (Tears Plus), जेंटील (Genteal) आदि आई ड्रॉप्स डाल सकते हैं। इनमें से किसी एक दवा की एक - एक बूंद रात के वक्त आंखों में डाल सकते हैं या जब भी आंखों में थकान महसूस तो भी इसे यूज कर सकते हैं। दवा की शीशी एक बार खोल लेने के बाद उसे एक महीने तक ही इस्तेमाल करें। इसके बाद दवा बची होने के बावजूद यूज करें। यह नियम किसी भी आईड्रॉप पर लागू होता है।

7. चाहें तो आंखों में दिन में एक - दो बार गुलाब जल भी डाल सकते हैं। रुई के फाहे बनाकर गुलाब जल में भिगोकर आंखों पर रखने से भी आराम मिलता है। गुलाबजल अच्छी क्वॉलिटी का ही खरीदें।

8. आंखों को आराम देने के लिए 20-20 गेम खेल सकते हैं। 20 मिनट तक स्क्रीन पर फोकस करने के बाद 20 सेकंड के लिए नजर वहां से हटाएं और खुद से 20 फुट दूर पर स्थित किसी चीज पर फोकस करें या फिर हर 20 मिनट के बाद 20 बाद पलकों को झपकें।

9. टी -20 की तरह स्ट्रैटजिक टाइम आउट भी लेते रहें यानी काम के दौरान हर घंटे आंखों को 3-5 मिनट के लिए आराम दें।

10. आंखें पास की चीजों पर फोकस करती हैं तो उन्हें ज्यादा काम करना पड़ता है। ऐसे में बीच - बीच में दूर की चीजों पर नजर फोकस करना जरूरी है।

11. दोनों हथेलियों को आपस में 30 सेकंड तक रगड़ें। हथेलियां हल्की गर्म हो जाएंगी। इनसे दोनों आंखों को बंद कर लें। आंखें इस तरह बंद करनी है , जिससे रोशनी आंखों तक पहुंचे। इस स्थिति में दो मिनट रहें। इससे थकी आंखों को काफी आराम मिलता है। ऐसा दिन में दो - तीन बार कर सकते हैं।

12. काम के बीच - बीच में आंखें बंद कर बैठें। 10 सेकंड के लिए ऐसा करें और फिर काम करें। दरअसल , खुली आंखें ऊर्जा को बाहर फेंकती हैं , जबकि बंद आंखें ऊर्जा को हासिल करती हैं। आंखें बंद करने से सिर्फ आंखों को , बल्कि मन को भी सुकून मिलता है।

13. आंखों की भवों को पकड़कर दबाते हुए आंख के चारों तरफ हल्की मालिश करें। इससे आंख के अंदर खून काबहाव बढ़ेगा आंखों का तनाव चला जाएगा।

14. आंखों को जल्दी - जल्दी खोलें और बंद करें। ऐसा 15 से 20 बार कर सकते हैं।

15. आंखों को क्लॉकवाइज और ऐंटि - क्लॉजवाइज दिशा में घुमाएं। क्लॉकवाइज एक बड़ा जीरो बनाएं। ऐसा ही जीरो ऐंटी - क्लॉकवाइज बनाएं। 10-10 बार दोनों तरफ से कर लें। दिन में दो से तीन बार तक कर सकते हैं।

16. पेन या पेंसिल को हाथ में पकड़कर खुद से दूर ले जाएं। फिर उसे सीधे पकड़कर उसकी टिप को धीरे - धीरे अपने करीब लाएं। जहां इमेज डबल हो या धुंधली हो , वहां एक इमेज में तब्दील करने की कोशिश करें। हल्के - हल्के नाक के पास तक लाने की कोशिश करें। इससे आंखों की मसल्स की एक्सर्साइज होगी।

17. हाथ के अंगूठे को आंखों से करीब 15 सेमी दूर रखें और अंगूठे के टिप पर फोकस करें। गहरी लंबी सांस लें और जाने दें। इसके बाद करीब चार मीटर की दूरी पर रखी किसी चीज पर आंखों को फोकस करें। फिर लंबी - गहरी सांस लें और छोड़ दें। इस प्रॉसेस को तीन - चार बार दोहरा सकते हैं।

नोट : आंखों को दिन में जितनी बार हो सकें , साफ और नॉर्मल या ठंडे पानी से धोएं। आंखों पर पानी के छींटे मार सकते हैं , लेकिन जोर से मारें। जोर से मारने से कॉनिर्या को नुकसान हो सकता है।

कंप्यूटर के सामने ऐसे बैठें
1. सिर और शरीर सीधा रहे।
2. कुर्सी की बैक ऐसी हो कि वह कमर के कर्व्स को सपोर्ट करे।
3. कुहनी आर्म रेस्ट पर रखकर ही काम करें।
4. कुर्सी अजस्टबेल और घूमने वाली हो।
5. कंप्यूटर स्क्रीन आंखों की सीध में या हल्का सा नीचे हो , स्क्रीन पर चमक और फॉन्ट साइज का ध्यान रखें।
6. कीबोर्ड ट्रे पर रखा हो। कीबोर्ड सॉफ्ट हो और उंगलियां रिलैक्स हों।
7. पैरों की ऊंचाई 90 डिग्री या उससे ज्यादा हो।
8. पैरों के नीचे फुट रेस्ट रखना बेहतर है।

कैसी हो कुर्सी

1 . मुमकिन है तो अर्गोनॉमिक तरीके से डिजाइन किया गया फर्नीचर चुनें। बड़े ब्रैंड्स इस तरह के टेबल - चेयर आदि तैयार करते हैं। ऐसा नहीं है तो मौजूदा कुर्सी को अपने मुताबिक अजस्ट कर लें।

2. ध्यान रखें कि कुर्सी की सीट इतनी बड़ी हो कि बैठने के बाद घुटने और सीट के बीच बस तीन - चार इंच की दूरी हो , यानी सीट चौड़ी हो। बैठते हुए पूरी थाइज को सपोर्ट मिलना चाहिए , लेकिन कुर्सी इतनी ज्यादा गहरी भी हो कि घुटने का पीछे वाला हिस्सा कुर्सी के नीचे वाले हिस्से को छूता रहे।

3. कुर्सी की बैक बिल्कुल सीधी होने की बजाय 10 डिग्री पीछे की ओर झुकी हो। आर्म रेस्ट जरूर हो और उसकी हाइट कुहनी से थोड़ी नीची होनी चाहिए। अगर आर्म रेस्ट ज्यादा ऊंचा है तो कुहनी को परेशानी होगी। रोटेटिंग ( घूमनेवाली ) चेयर बेहतर है।

4. कुर्सी पर बैक रेस्ट लगाना चाहिए। जिन्हें दर्द है , उन्हें भी और जिन्हें दर्द नहीं है , उन्हें भी बैक रेस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर बैक रेस्ट का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो बहुत छोटा - सा कुशन कमर के पीछे लगाना चाहिए ताकि कमर के नीचे वाले हिस्से को सपोर्ट मिल सके।

5. कमर को सीधा रखकर और कंधों को पीछे की ओर खींचकर बैठें , लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अकड़कर बैठें। कुर्सी के पीछे तक बैठें और हिप्स कुर्सी की पीठ से सटे रहें। खुद को ऊपर की तरफ तानें और अपनी कमर के कर्व को जितना मुमकिन हो , उभारें। कुछ सेकंड के लिए रोकें। अब पोजिशन को थोड़ा रिलैक्स करें। यह एक अच्छा सिटिंग पॉस्चर होगा। अपने शरीर का भार दोनों हिप्स पर बराबर बनाए रखें।

6. कुर्सी पर बैठे हैं तो ध्यान रखें कि घुटनों का लेवल करीब 90 डिग्री या उससे ऊंचा हो यानी घुटने जंघा की ऊंचाई से थोड़ा ऊपर ही हों , नीचे नहीं। अगर पैरों का लेवल नीचे हो तो पैरों के नीचे फुट - रेस्ट लगाना चाहिए।

कौन - सी एक्सर्साइज करें

1 . काम करते वक्त बीच - बीच में करीब दो घंटे में बैठे - बैठे या खड़े होकर एक्सर्साइज करें। अगर उठकर जाना मुमकिन नहीं है तो भी बैठे - बैठे एक्सर्साइज जरूर करें। इससे खून का दौरा चलता रहेगा।

2. पंजों और एड़ियों को चलाएं। आगे - पीछे झुकाएं। फिर क्लॉक वाइज और ऐंटी क्लॉक - वाइज गोल - गोल घुमाएं।

3. कुर्सी पीछे कर पैरों को स्ट्रेच करें। काफ मसल्स को खासकर स्ट्रेच करें। इन्हें सेकंड हार्ट भी कहते हैं। जब हम चलते हैं तो ये ब्लड को ऊपर की ओर पंप करती हैं। लंबे समय तक इस्तेमाल किया जाए तो काफ मसल्स सूज जाती हैं।

4. गर्दन की एक्सर्साइज भी करें। छत की ओर देखें। फिर दोनों दिशाओं में गोल - गोल घुमाएं।

5. दोनों हाथों को वेस्ट लाइन पर रखकर पीछे की तरफ झुकें।

6. दोनों कंधों को बांधकर पीछे की ओर खींचें। दोनों साइड में एक - एक कर झुकें।

7. दोनों हाथों को उठाकर कंधे पर रखें और कुहनियों को घुमाकर जीरो बनाएं। इससे मसल्स लचीली बनी रहती हैं।

8. हाथों की मुट्ठी बांधें और खोलें। गोल - गोल घुमाएं। उंगलियों को स्ट्रेच करें।

9. कमरे या वॉशरूम के कोने में चले जाएं। कोने की ओर मुंह कर लें। दोनों हाथों को अलग - अलग दीवारों पर रख लें। आगे की ओर ताकत के साथ झुकें।

नोट : ऊपर दी गई एक्सर्साइज कंप्यूटर पर लंबे समय तक काम करने वाले लोगों के लिए हैं , जिन्हें वे ऑफिस में ही कर सकते हैं। हालांकि यह पूरा एक्सर्साइज प्रोग्राम नहीं है। हर किसी को रोजाना एक्सर्साइज करनी चाहिए।

रोजाना करें वर्कआउट

1. सीधे खड़े हो जाएं। सांस भरते हुए गर्दन को धीरे - धीरे जितना मुमकिन हो , पीछे ले जाएं। 5 सेंकड रुकें फिर सांस छोड़ते हुए गर्दन को धीरे - धीरे जितना मुमकिन हो , आगे की तरफ झुकाएं। कोशिश करें कि ठोड़ी छाती से लग जाए। दर्द है तो गर्दन आगे नहीं झुकानी है।

2. सीधे खड़े हो जाएं। अब गर्दन को क्लॉक - वाइज और ऐंटी - क्लॉकवाइज घुमाएं। धीरे - धीरे करें और जब पीछे की ओर जाएं तो सिर अधिकतम पीछे की तरफ ले जाएं। ऐसा ही आगे की तरफ भी करें। ऐसा 10-10 बार करें।

3. सीधे खड़े हो जाएं और अब गर्दन को लेफ्ट कंधे की तरफ अधिकतम जितना हो सके , धीरे - धीरे झुकाएं। फिर गर्दन को वापस बीच में ले आएं और फिर राइट की ओर ले जाएं। ऐसा 10 बार करें।

4. थोड़ी ऊंची कुर्सी पर बैठ जाएं। कमर सीधी हो। लेफ्ट पैर को उठाकर सीधा करें और जितना हो सके , खीचें। 10 सेकंड रोकें। फिर पैर को नीचे ले आएं। ऐसा ही राइट पैर से भी करें। 10-10 बार करें।

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ . पी . के . दवे , चेयरमैन , रॉकलैंड हॉस्पिटल
डॉ . महिपाल सचदेव , चेयरमैन , सेंटर ऑफ साइट
डॉ . राजीव अग्रवाल , इंचार्ज , न्यूरो फिजियोथेरपी यूनिट , एम्स

एक्सपर्ट्स से पूछें
अगर ऑफिस में काम करने के दौरान होने वाली फिजिकल प्रॉब्लम्स पर आपका अब भी आपका कोई सवाल बचा है तो आप हमें अपना सवाल हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। मेल करें : sundaynbt@gmail.com
हमारे एक्सपर्ट आपको बताएंगे उस सवाल का जवाब। आपके सवाल हमें मंगलवार तक मिल जाने चाहिए।


पिछले हफ्ते जस्ट जिंदगी में हमने बच्चों के सेक्स संबंधी सवालों के जवाब पर लेख छापा था। इससे जुड़े काफी सवाल हमें अपने पाठकों की तरफ से मिले। पाठकों के चुनिंदा सवालों के जवाब दे रहे हैं हमारे एक्सपर्ट डॉ . समीर पारिख , सायकायट्रिस्ट , फोर्टिस हेल्थकेयर :

सवालः मेरा बेटा 9 साल का है। जब भी वह टीवी पर उत्तेजित कर देने वाले सीन देखता है तो उसे अपराध बोध होने लगता है। वह अपनी बहन और मां के नजदीक आने से भी बचता है। स्कूल में भी लड़कियों से दूर रहता है। क्या यह व्यवहार ठीक है। हम क्या करें ?
- मनीष अरोड़ा
जवाबः बच्चे और युवाओं में भावनाओं और विचारों से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं। ऐसा लगता है कि आपके बच्चे के विचारों में कुछ डिस्टर्बेंस है। दिमाग में मौजूद न्यूरोट्रांसमिटर्स में असंतुलन की वजह से ऐसा हो सकता है। यह व्यवहार नॉर्मल नहीं है इसलिए आपको किसी सायकायट्रिस्ट को अपने बच्चे को दिखाना चाहिए और उनकी सलाह के मुताबिक आगे बढ़ना चाहिए।

सवालः मेरा 13 साल का बेटा बहुत ज्यादा मास्टरबेशन करता है। पिछले दिनों उसने मुझे बताया कि अब हॉर्मोंस बाहर नहीं आते। मैं उसे कैसे समझाऊं ?
- एक पाठक
जवाबः यौवनावस्था में मास्टरबेशन करना नैचरल बात है , लेकिन अति हर चीज की बुरी है। जब इस तरह की आदत बच्चे की रोजमर्रा की सामान्य गतिविधियों पर प्रभाव डालने लगती है तो समस्या हो जाती है। आपके सवाल से यह समझ पाना मुश्किल है कि वास्तव में आपके बच्चे को क्या हुआ है या वह क्या कहना चाहता है। ऐसे में सलाह यही है कि उसे किसी बाल रोग विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक दोनों के पास ले जाएं। इससे उसकी दोनों पहलुओं से जांच हो जाएगी और समस्या का हल मिल जाएगा।

सवालः मेरे दो बच्चे हैं। 10 साल का बेटा है और 13 साल की बेटी। दोनों बच्चे सेक्स , रेप आदि से संबधित कई सवाल पूछते हैं। उनकी जिज्ञासाओं का समाधान कैसे करें। सवालों का जवाब देने में हमें झेंप महसूस होती है।
- राजीव शुक्ला
जवाबः बच्चे स्वभाव से ही जिज्ञासु होते हैं। जब वे अपने चारों तरफ इस तरह के शब्दों और बातों को सुनते हैं तो इस तरह के सवालों की तादाद बढ़ जाती है। यह अच्छी बात है कि आपके बच्चे अपने सवाल आपसे पूछ रहे हैं , नहीं तो अगर इन्हीं सवालों को उन्होंने बाहर दोस्तों में पूछना या जानना शुरू कर दिया तो भटकाव के चांस ज्यादा हैं। बच्चे के विकास और उसके समझ - बूझ का ध्यान रखते हुए उसके पूछे गए सवालों का जवाब सही तरीके से दें। किसी भी सवाल के जवाब में कोई झूठा या बनावटी जवाब दें और ही सवाल से बचने या उसे डांटने की कोशिश करें। इन सवालों का जवाब देने में डरें नहीं।

Sunday, June 3, 2012

समर का कहर, जरा ठहर!

jiwan anmol hai iska mol samjhe......................

गर्मियां इन दिनों पूरे जोरों पर हैं। घर से बाहर निकलो तो शरीर झुलसने लगता है और कब हीट स्ट्रोक के लपेटे में जाएं , पता ही नहीं लगता। अंदर रहकर पसीना आए तो स्किन की प्रॉब्लम शुरू हो जाती हैं। कुछ उलटा - सीधा खा लिया तो डायरिया हो सकता है। दरअसल , कई ऐसी बीमारियां हैं , जो गर्मियों या बढ़ते तापमान से सीधे जुड़ी हैं। एक्सपर्ट्स से बात करके ऐसी ही बीमारियों , उनकी रोकथाम और इलाज के बारे में बता रही हैं प्रियंका सिंह :

घमौरियां और रैशेज
1. गर्मियों में पसीना निकलने से स्किन में ज्यादा मॉइस्चर रहता है , जिसमें कीटाणु ( माइक्रोब्स ) आसानी से पनपते हैं। इस दौरान ज्यादा काम करने से स्वेट ग्लैंड्स ( पसीने की ग्रंथियां ) ब्लॉक हो जाते हैं और पसीना स्किन की अंदरूनी परत के अंदर जमा रह जाता है। यह रैशेज और घमौरियों का रूप ले लेता है।

2. घमौरियां और रैशेज होने पर स्किन लाल पड़ जाती है और उसमें खुजली जलन होती है। रैशेज से स्किन में दरारें - सी नजर आती हैं और स्किन सख्त हो जाती है , वहीं घमौरियों में लाल - लाल दाने निकल आते हैं। बच्चों में बुखार के दौरान आमतौर पर दानेवाली घमौरियां निकलती हैं। इसके लिए किसी दवा की जरूरत नहीं होती।

क्या करें : मोटे और सिंथेटिक कपड़ों की बजाय खुले , हल्के और हवादार कपड़े पहनें। ऐसे कपड़े पहनें , जिनमें रंग निकलता हो। ध्यान रहे कि कपड़े धोते हुए उनमें साबुन रहने पाए। खूब पानी पीएं। हवादार और ठंडी जगह में रहें। घमौरियों वाले हिस्से की दिन में एक - दो बार बर्फ से सिकाई करें और कैलेमाइन (Calamine) लोशन लगाएं। मॉइस्चराइजर वाला कैलेमाइन लोशन (Calosoft, Efatop-C आदि ) लगाना बेहतर है। ऐंटि - बैक्टीरियल पाउडर लगाएं। खुजली ज्यादा है तो डॉक्टर की सलाह पर खुजली की दवा ले सकते हैं।

सनबर्न और टैनिंग
1. गर्मियों में अक्सर लोगों को सनबर्न ( स्किन का झुलसना ) और टैनिंग ( स्किन का रंग गहरा होना ) हो जाती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक टैनिंग खराब चीज नहीं है इसलिए उसके लिए किसी तरह का उपाय करने की जरूरत नहीं है। लेकिन सनबर्न और पिग्मेंटेशन ( जगह - जगह धब्बे पड़ना ) होने पर स्किन में जलन और खुजली होती है। जो लोग सनबर्न होने के बाद भी धूप में घूमते रहते हैं , अगर वे पानी पिएं तो उन्हें हीट स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है।

क्या करें : एसपीएफ 30 तक का नॉन - ऑइली सनस्क्रीन लगाएं। ढीले , पूरी बाजू के , हल्के रंग के कॉटन के कपड़े पहनें। बाहर जाते हुए छाते का इस्तेमाल जरूर करें। सुबह 10 बजे से शाम 3 बजे तक धूप में निकलने से बचें। बाहर निकलें तो काले रंग की छतरी लेकर जाएं। खूब पानी पिएं।

1. कैलेमाइन लोशन या ऐंटि - इन्फ्लेमेट्री यानी सूजन और जलन से राहत दिलाने वाले लोशन हाइड्रोकॉर्टिसोन (Hydrocortisone) लगा सकते हैं। यह जेनरिक नेम है और मार्केट में अलग - अलग ब्रैंड नेम से मिलता है।

2. ज्यादा खुजली हो तो डॉक्टर ऐंटि - अलर्जिक गोली सिट्रिजिन (Cetirizine) खाने की सलाह देते हैं। यह भी जेनरिक नाम है। जब तक सनबर्न ठीक हो , धूप से बचें।

3. घरेलू उपाय भी आजमा सकते हैं। आधा कप दही में आधा नीबू निचोड़ कर अच्छी तरह मिला लें। फ्रिज में रख लें और रात को सोने से पहले क्रीम की तरह लगा लें। पांच मिनट बाद इसके ऊपर से हल्का मॉइस्चराइजर भी लगा सकते हैं। राहत मिलेगी। मुल्तानी मिट्टी में गुलाब जल मिलाकर भी लगा सकते हैं।

शरीर में बदबू
1. पसीने में मॉइस्चर की वजह से गर्मियों में हमारे शरीर में बदबू आने लगती है। शरीर में मौजूद बैक्टीरिया हाइड्रोजन सल्फाइड बनाने लगते हैं , जिससे बदबू या पीलापन पैदा होता है।

क्या करें : लहसुन - प्याज आदि का इस्तेमाल कम करें। दिन में दो - तीन बार पानी में नीबू डालकर नहाएं। बॉडी पर बर्फ लगा सकते हैं , जिससे पसीना कम निकलेगा। रोजाना साफ अंडरगार्मेंट और जुराबें पहनें। डियो या परफ्यूम इस्तेमाल करें।

1. कूलिंग , ऐंटि - बैक्टीरियल पाउडर (Nysil आदि ) या ऐंटि - फंगल पाउडर यूज करें या कैलेमाइन लोशन लगाएं। ऐंटि - फंगल पाउडर मार्केट में माइकोडर्म (Mycoderm), अब्जॉर्ब (Abzorb), जिएजॉर्ब (Zeasorb) आदि ब्रैंड नेम से मिलता है।

2. दिन में दो बार फिटकरी को हल्का गीला कर बॉडी फोल्ड्स में लगा लें। इससे पसीना कम आता है , लेकिन इसे जोर से रगड़े नहीं , वरना स्किन कट जाएगी। ऐंटि - प्रॉस्पैरंट लोशन या पाउडर लगा सकते हैं। इसका जेनरिक नाम ऐल्युमिनियम हाइड्रॉक्साइड (Aluminium Hydroxide) है। इससे पसीना कम आएगा और बैक्टीरिया भी कम पनपेंगे।

नुकीले दाने
गर्मियों में आमतौर पर नुकीले या तीखे दाने निकलते हैं। वाइटहेड , ब्लैकहेड के अलावा पस वाले दाने भी हो सकते हैं। फोड़े - फुंसी और बाल तोड़ भी हो सकते हैं। बाल तोड़ शुगर के मरीजों में काफी होते हैं। असल में , जब कीटाणु स्किन के नीचे पहुंच जाते हैं और पस बनाना शुरू कर देते हैं तो यह समस्या हो जाती है। आम धारणा है कि ऐसा आम खाने से होता है , लेकिन यह सही नहीं है। यह मॉइस्चर में पनपने वाले बैक्टीरिया की वजह से होता है।

क्या करें : ऐंटि बैक्टीरियल साबुन से दिन में दो बार नहाएं। शरीर को जितना मुमकिन हो , सूखा और फ्रेश रखें। हवा में रहें।

1. सेलिसायलिक (Salicylic) बेस्ड क्लींजर या फेशवॉश इस्तेमाल करें। इससे ऑइल कम हो जाता है।

2. ऐंटि - बायॉटिक क्रीम लगाएं , जिनके जेनरिक नाम फ्यूसिडिक ऐसिड (Fusidic Acid) और म्यूपिरोसिन (Mupirocin) हैं।

3. गर्म तासीर वाली चीजें जैसे अदरक , लहसुन , अजवाइन , मेथी , चाय - कॉफी आदि कम खाएं - पिएं। इनसे ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं , जिससे कीटाणु जल्दी जाते हैं।

4. ग्रंथियां ज्यादा काम कर रही हैं तो क्लिंडेमाइसिन (Clindamycin) लोशन लगा सकते हैं। यह मुहासों की भी रोकथाम करता है और मार्केट में कई ब्रैंड नेम से मिलता है। ऐंटि ऐक्ने साबुन ऐक्ने - एड (Acne-Aid), ऐक्नेक्स (Acnex), मेडसॉप (Medsop) आदि भी यूज कर सकते हैं। ये ब्रैंड नेम हैं।

फंगल इन्फेक्शन
रिंग वॉर्म यानी दाद - खाज की समस्या गर्मियों में बढ़ जाती है। यह शरीर के उन हिस्सों में होता है , जिनमें पसीना ज्यादा आता है। इसमें गोल - गोल टेढ़े - मेढ़े रैशेज जैसे नजर आते हैं , रिंग की तरह। ये अंदर से साफ होते जाते हैं और बाहर की तरफ फैलते जाते हैं। इनमें खुजली होती है और एक से दूसरे में फैल जाते हैं।

क्या करें : नहाने के बाद बॉडी को अच्छी तरह सुखाएं। कहीं पानी रहने से इन्फेक्शन हो सकता है। ऐंटि - फंगल क्रीम क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazol) लगाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से ग्राइसोफुलविन (Griseofulvin) टैब्लेट ले सकते हैं। ये दोनों जेनरिक नेम हैं।

छपाकी
ज्यादा गरम चीजें ( नॉनवेज , नट्स , लहसुन आदि ) खाने से कई बार स्किन पर अचानक लाल - लाल चकत्ते पड़ जाते हैं। इनमें हल्की खुजली होती है। इस स्थिति को अर्टिकेरिया या हाइव्स भी कहा जाता है।

क्या करें : कैलेमाइन लोशन लगाएं। ऐंटि - अलजिर्क पाउडर या लोशन लगाएं।

ऐथलीट्स फुट
जो लोग लगातार जूते पहने रहते हैं , उनके पैरों की उंगलियों के बीच की स्किन गल जाती है। समस्या बढ़ जाए तो इन्फेक्शन नाखून तक फैल जाता है और वह मोटा और भद्दा हो जाता है।

क्या करें : जूते उतार कर रखें और पैरों को हवा लगाएं। जूते पहनना जरूरी हो तो पहले पैरों को साबुन से साफ करें। फिर फिटकरी लगा लें। पैरों पर पाउडर भी डाल सकते हैं। क्लोट्राइमाजोल क्रीम या पाउडर लगाएं।

कॉन्टैक्ट अलर्जी
आर्टिफिशल जूलरी , बेल्ट , जूते आदि के अलावा जिन कपड़ों से रंग निकलता है , उनसे कई बार अलर्जी हो जाती है , जिसे कॉन्टैक्ट अलर्जी कहा जाता है। जहां ये चीजें टच होती हैं , वहां एक लाल लाइन बन जाती है और दाने बन जाते हैं। इनमें काफी जलन होती है। अगर जूलरी आदि को लगातार पहनते रहेंगे तो बीमारी बढ़ जाएगी और उस जगह से पानी निकलना ( एक्जिमा ) शुरू हो जाएगा।

क्या करें : सबसे पहले उस चीज को हटा दें , जिससे अलर्जी है। गर्मियों में आर्टिफिशल जूलरी से बचें। उस पर हाइड्रोकोर्टिसोन लगाएं।

स्किन से जुड़ी समस्याएं

सनस्क्रीन और डिओ
1. सनस्क्रीन दो तरह के होते हैं : एक जो सूरज की किरणों को ब्लॉक करते हैं। ये तभी तक काम करते हैं , जब तक स्किन पर मौजूद रहते हैं। दूसरी तरह के सनस्क्रीन केमिकल आधारित होते हैं और स्किन में समाकर अंदर से सुरक्षा देते हैं। इन्हें बेहतर माना जाता है। हालांकि आजकल दोनों फैक्टरों को मिलाकर तैयार किए गए सनस्क्रीन मार्केट में ज्यादा मिलते हैं। सनस्क्रीन वॉटर बेस्ड लगाना चाहिए और सूरज में निकलने से कम - से - कम 10-15 मिनट पहले लगाना जरूरी है। अगर धूप में रहना है तो हर दो घंटे बाद फिर से लगाना चाहिए। यह झुर्रियां आने की रफ्तार कम करता है। घर में ही रहना है तो सनस्क्रीन लगाना जरूरी नहीं है।

2. एसपीएफ यानी सन प्रोटेक्शन फैक्टर को लेकर अक्सर लोगों को गलतफहमी होती है , मसलन ज्यादा - से - ज्यादा एसपीएफ का सनस्क्रीन लगना बेहतर है। असल में , हम भारतीयों की स्किन टाइप 3 और टाइप 4 कैटिगरी में आती है। बहुत गोरे लोगों की स्किन टाइप 1 टाइप 2 होती है और बेहद काले ( नीग्रो आदि ) की टाइप 5 6 कैटिगरी में आती है। ऐसे में हम लोगों के लिए 30 एसपीएफ काफी है। सांवली स्किन वाले लोगों को भी 15-30 एसपीएफ का सनस्क्रीन यूज करना चाहिए। यह धारणा गलत है कि सांवले लोगों को सनस्क्रीन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बच्चों को पांच साल की उम्र के बाद ही सनस्क्रीन लगाएं।

3. डिओ लगाने से कोई नुकसान नहीं है। यह शरीर को ताजगी और खुशबू देते हैं। लेकिन डिओ को सीधे बॉडी पर लगाने की बजाय कपड़ों पर लगाना बेहतर है , ताकि उसके केमिकल शरीर में कम जाएं। जब भी पसीना आए , डिओ लगा सकते हैं। आमतौर पर डिओ अलर्जी नहीं करते लेकिन जिन्हें अलर्जी है , उन्हें डिओ नहीं लगाना चाहिए।

ध्यान दें
1. गर्मियों में अक्सर लोग बॉडी की मॉइस्चराइजिंग को लेकर लापरवाह हो जाते हैं , लेकिन गमिर्यों में भी शरीर को मॉइस्चर करना जरूरी है।

2. दिन में दो बार चेहरे और बॉडी को माइल्ड क्लींजर से साफ करें। फिर चेहरे पर अल्कोहल - फ्री टोनर लगाएं और इसके बाद 30 तक एसपीएफ वाला वॉटर बेस्ड मॉइस्चराइजर लगाएं। बॉडी पर भी अच्छी क्वॉलिटी का लोशन यूज करें।

3. जिनकी स्किन सेंसटिव हैं , वे सेलिसायलिक (Celisylic) बेस्ड फेशवॉश यूज करें।

लू लगना ( हीट स्ट्रोक )
1. गर्मी के मौसम में हवा के गर्म थपेड़ों और बढ़े हुए तापमान से शरीर में पानी और नमक की ज्यादा कमी होने पर लू लगने की आशंका होती है। धूप में घूमने वालों , बच्चों , बूढ़े और बीमारों को लू लगने का डर ज्यादा होता है।

बचाव है बेहतर
एक्सर्पट्स का मानना है कि लू के इलाज से बेहतर है बचाव। बचाव इस तरह कर सकते हैं :

1. तेज गर्म हवाओं में बाहर जाने से बचें। नंगे बदन और नंगे पैर धूप में निकलें। धूप से बचने के लिए छाते का इस्तेमाल करें। इसके अलावा , सिर पर गीला या सादा कपड़ा रखकर चलें। चश्मा पहनकर बाहर जाएं। चेहरे को कपड़े से ढक लें।

2. घर से बाहर पूरे और ढीले कपड़े पहनकर निकलें , ताकि उनमें हवा लगती रहे। ज्यादा टाइट और गहरे रंग के कपड़े पहनें। सूती कपड़े पहनें। सिंथेटिक , नायलॉन और पॉलिएस्टर के कपड़े पहनें।

3. खाली पेट बाहर जाएं और ज्यादा देर भूखे रहने से बचें। घर से पानी या कोई ठंडा शरबत पीकर निकलें , जैसे आम पना , शिकंजी , खस का शर्बत आदि। साथ में भी पानी लेकर चलें।

4. बहुत ज्यादा पसीना आया हो तो फौरन ठंडा पानी पीएं। सादा पानी भी धीरे - धीरे करके पीएं।

5. रोजाना नहाएं और शरीर को ठंडा रखें। घर को ठंडा रखने की कोशिश करें। खस के पर्दे , कूलर आदि का इस्तेमाल करें।

क्या होता है लू लगने पर
1. लू लगने पर शरीर में गर्मी , खुश्की , सिरदर्द , कमजोरी , शरीर टूटना , बार - बार मुंह सूखना , उलटी , चक्कर , तेज बुखार , सांस लेने में तकलीफ , दस्त और कई बार निढाल या बेहोशी जैसे लक्षण नजर आते हैं। लू लगने पर पसीना नहीं आता।

2. शरीर में गर्मी , खुश्की और थकावट महसूस होती है , शरीर टूटने लगता है और शरीर का तापमान एकदम बढ़ जाता है। अक्सर बुखार बहुत ज्यादा मसलन 105 या 106 डिग्री फॉरनहाइट तक पहुंच जाता है। यह इमरजेंसी की हालत होती है , जिसमें ब्लडप्रेशर भी लो हो जाता है और लिवर - किडनी में सोडियम पोटैशियम का संतुलन बिगड़ जाता है। ऐसे में बेहोशी भी सकती है। इसके अलावा , लो बीपी , ब्रेन या हार्ट स्ट्रोक की स्थिति भी बन सकती है। ठीक वक्त पर इलाज कराया जाए तो मौत भी हो सकती है।

क्या करें
1. बुखार 104 डिग्री से ज्यादा है तो रेक्टल ( गुदा से ) टेंपरेचर लें। इसके लिए अलग थर्मोमीटर आते हैं। इससे बॉडी के अंदरूनी तापमान का सही आकलन हो पाता है। लू लगने पर अक्सर बाहर के तापमान से ज्यादा होता है अंदरूनी तापमान।

2. इतने तेज बुखार में पैरासिटामोल ( क्रोसिन , कालपोल आदि ) टैब्लेट्स असरदार नहीं होतीं। सबसे पहले शरीर का तापमान कम करना जरूरी है। मरीज को बहते पानी के नीचे बिठा दें या उसके पूरे शरीर पर बर्फ के पानी की पट्टियां रखें। आसपास का माहौल ठंडा रखें। पंखा , कूलर और एसी चला दें। बॉडी की स्पॉन्जिंग करें , जब तक तापमान कम जो जाए।

3. लगातार तरल और ठंडी चीजें दें , जैसे कि नीबू पानी , नारियल पानी , सत्तू का घोल , बेल का शर्बत , आम पना , राई का पानी आदि। शरीर में पानी की कमी होने दें और ठंडी चीजें खिलाकर अंदरूनी तापमान को कम करें।

4. उसके हाथ - पैरों की हल्के हाथों से मालिश करें। तेल लगाएं। गुलाब जल में रुई भिगोकर आंखों पर रखें। फिर भी आराम आए तो फौरन मरीज को डॉक्टर के पास ले जाएं।

5. मरीज को बाहर का खाना खिलाएं। घर में भी परांठा , पूड़ी - कचौड़ी आदि तला - भुना खिलाएं। पतली खिचड़ी , दलिया जैसा हल्का खाना दे सकते हैं। जितना हो सके , ठंडी चीजें खिलाएं।

नोट : गर्मियों के बुखार को नजरअंदाज करें। सामान्य बुखार के अलावा , हीट स्ट्रोक की आशंका तो होती है , साथ ही मच्छरों का सीजन होने की वजह से कई बार मलेरिया होने के भी चांस होते हैं।

पेट की बीमारियां
गर्मियों में दूषित खाने और पानी के इस्तेमाल से पेट में इन्फेक्शन हो जाता है। इसे गैस्ट्रोइंटराइटिस या समर फ्लू कहते हैं। ऐसा होने पर मरीज को बार - बार उलटी , दस्त , पेट दर्द , शरीर में दर्द या बुखार हो सकता है। अगर स्टमक में इन्फेक्शन हो तो उलटी और पेट दर्द होगा। इंटेस्टाइन ( आंत ) में इन्फेक्शन हो तो दस्त और पेट दर्द होगा। इन दोनों ही स्थिति में बुखार भी हो सकता है।

डायरिया गैस्ट्रोइंटराइटिस का ही रूप है। इसमें अक्सर उलटी और दस्त दोनों होते हैं , लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि उलटियां हों , पर दस्त खूब हो रहे हों। यह स्थिति खतरनाक है। आम बोल-चाल में कहें तो एक बार दस्त का मतलब है करीब एक गिलास पानी की कमी। इस तरह डीहाइट्रेशन यानी शरीर में पानी की कमी हो सकती है।

कितनी तरह का
डायरिया आमतौर पर तीन तरह का होता है : वायरल , बैक्टीरियल और प्रोटोजोअल। पहला वायरस से होता है और ज्यादातर छोटे बच्चों में होता है। यह सबसे कम खतरनाक होता है , जबकि दूसरा बैक्टीरिया और तीसरा अमीबा से होता है। ये दोनों ज्यादा खतरनाक हैं और इनमें डॉक्टर की देखरेख के बिना इलाज नहीं करना चाहिए।

1. अगर तेज बुखार हो , पेशाब कम हो रहा हो और मल के साथ खून या पस रहा है तो बैक्टीरियल या प्रोटोजोअल डायरिया हो सकता है। बैक्टीरियल इन्फेक्शन में ऐंटि - बायॉटिक और प्रोटोजोअल इन्फेक्शन में ऐंटि - अमेबिक दवा दी जाती है। अगर किसी बहुत ज्यादा ऐंटि - बायोटिक खाई हैं , तो उसे साथ में प्रोबायोटिक्स भी देते हैं। वैसे , दही प्रोबायोटिक्स का बेहतरीन सोर्स है।

2. वायरल डायरिया है तो आमतौर पर डरने की बात नहीं होती। मरीज को ओआरएस का घोल या नमक और चीनी की शिकंजी लगातार देते रहें। उलटी रोकने के लिए Domperidone टैब्लेट ले सकते हैं। ये मार्केट में Domstal, Dom DT आदि नाम से मिलती हैं। लूज मोशंस के लिए Racecadotril ले सकते हैं। ये Imodium, Loperamide आदि ब्रैंड नेम से मिलती हैं। पेट में मरोड़ हैं तो Maftal Spas ले सकते हैं। एक दिन में उलटी या दस्त रुके तो डॉक्टर के पास ले जाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर आईवी ( इंट्रा - वीनस ) फ्लुइड भी देते हैं , क्योंकि पानी की ज्यादा कमी से किडनी पर भी असर पड़ सकता है।

3. लोगों में गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना - पानी नहीं देना चाहिए क्योंकि उलटी - दस्त के जरिए सब कुछ निकल जाता है। लेकिन यह बिल्कुल गलत है। इससे खतरा बढ़ जाता है। मरीज को लगातार पतली और हल्की चीजें देते रहें , जैसे कि नारियल पानी , नींबू पानी ( हल्का नमक और चीनी मिला ), छाछ , लस्सी , दाल का पानी , ओआरएस का घोल , पतली खिचड़ी , दलिया आदि देते रहें। मरीज को सिर्फ तली - भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए।

बरतें ये सावधानियां
1. पानी खूब पिएं लेकिन बाहर का पानी पीने से बचें। घर का साफ और उबला पानी पिएं। हैंडपंप का पानी पिएं।

2. बासी खाने से परहेज करें। हमेशा घर की बनी ताजा खाने की चीजें इस्तेमाल करें।

3. खाने की चीजों को अच्छी तरह धोएं और अच्छी तरह पकाएं। सलाद आदि से परहेज करें या खूब अच्छी तरह धोकर खाएं।

4. खाने से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोएं।

5. बाहर बिकने वाले कटे फल , दही भल्ले , गोल गप्पे चटनी , सलाद , गन्ने का रस , शेक आदि पीने से बचें।

6. फ्रूट - जूस भी बाहर का तभी पिएं , जब सफाई की गारंटी हो।

7. खाने में दही का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करें , क्योंकि यह पेट को ठंडा रखने के साथ स्किन आदि के लिए भी फायदेमंद है।

8. गोभी , आलू जैसी सब्जियों के बजाय तोरी , भिंडी , लौकी आदि मौसमी सब्जियां खाएं।

9. संतरा , अंगूर , तरबूज , ककड़ी जैसे मौसमी फल खाएं।

10. नीबू पानी , आम पना , बेल या गुड़ का शरबत काफी फायदेमंद होता है।

11. गर्मी में कच्ची प्याज खाना भी लाभदायक होता है।

नोट : बड़ों के मुकाबले बच्चों में पानी की कमी तेजी से होती है। इसका सीधा - सा गणित शरीर का वजन और ऊंचाई है। जितना बड़ा शरीर होता है , उसमें उतना ही पानी आता है यानी बड़े लोगों में आमतौर पर पांच से छह लीटर और बच्चों में दो से ढाई लीटर पानी होता है। बच्चे बड़ों से ज्यादा सक्रिय होते हैं। इस वजह से उनके पानी की खपत ज्यादा होती है।

एक्सपर्ट्स पैनल
1. डॉ . अनूप मिश्रा, डायरेक्टर , फॉटिर्स सीडॉक सेंटर फॉर इंटरनल मेडिसिन
2. डॉ . के . के . अग्रवाल, सीनियर जनरल फिजिशन, मूलचंद हॉस्पिटल
3. डॉ . गोविंद श्रीवास्तव, डेप्युटी डायरेक्टर, स्किन इंस्टिट्यूट ऐंड स्कूल ऑफ डर्मोटॉलजी
4. डॉ . मोनिका जैन, सीनियर कंसल्टेंट , गैस्ट्रोएंट्रॉलजी फोर्टिस हॉस्पिटल
5. डॉ . एम . भगत, सीनियर कंसल्टेंट , गैस्ट्रोएंट्रॉलजी , श्री बालाजी ऐक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट
6. डॉ . इंदु तोलानी, सीनियर कंसल्टेंट , डर्मोटॉलजी, बी . एल . कपूर हॉस्पिटल

एक्सपर्ट के जवाब
डॉ . राजीव अग्रवाल, इंचार्ज, न्यूरोफिजियोथेरपी यूनिट , एम्स

सवालः मैं एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर हूं और 7-8 घंटे लैपटॉप पर टाइपिंग करने में बिताता हूं। उंगलियों में बाहर की ओर दर्द होता है। मैं एक्सर्साइज करता हूं लेकिन कोई राहत नहीं मिलती , क्या करूं ?
- प्रदीप दाल

जवाबः आपको रिपिटेटिव स्ट्रेस इंजरी हो सकती है। सर्वाइकल से जुड़ी प्रॉब्लम तो नहीं है , यह जांचना भी जरूरी है। बेहतर है कि आप किसी अच्छे मेडिकल एक्सपर्ट को दिखाएं। उसकी देख - रेख में पूरा इलाज कराना जरूरी है। इस बीच काम के बीच - बीच में अपने हाथों को आराम दें। जितना मुमकिन है , हाथों , हथेलियों और उंगलियों की एक्सरसाइज करते रहें।

सवालः ऑफिस में लगातार कंप्यूटर पर काम करने के बाद अक्सर मेरी गर्दन या कमर में दर्द होने लगता है। क्या करूं ?
- सुमित बजाज , दीप्ति

जवाबः आपके दर्द की वजह मसल्स की कमजोरी हो सकती है। आप अपनी मसल्स को एक्सर्साइज के जरिए मजबूत करें। काम के बीच - बीच में ब्रेक लें। गर्दन को साइड में और ऊपर - नीचे घुमाएं। हाथों को ऊपर उठाकर कमर को पीछे की ओर झुकाएं , लेकिन जबरदस्ती न करें। दर्द फिर भी बरकरार रहता है तो इग्नोर करें। फौरन डॉक्टर को दिखाएं।