कामकाजी जीवनसाथी के फायदे
हाल ही में मैंने ‘कॉकटेल’ फिल्म देखी। इसका प्लॉट एक आशिक-आवारा टाइप के युवक के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसके समक्ष दो सेक्सी युवतियों में से किसी को चुननेे की मुश्किल चुनौती है। इस फिल्म की पृष्ठभूमि लंदन की है। इसके किरदार नाइटक्लब में झूमते-नाचते हैं, शराब पीते हैं और मौज-मस्ती करते हैं। वे ग्लैमर फोटोग्राफी, ग्राफिक आर्ट और सॉफ्टवेयर डिजाइनिंग जैसे आज के दौर के शानदार कॅरियर विकल्पों से जुड़े हैं। मगर फिर भी आखिर में नायक उसी लडक़ी को अपने लिए चुनता है, जो घर में खाना पकाती है, पारंपरिक परिधान पहनती है, उसकी मां की रजामंदी हासिल कर लेती है और खुशी-खुशी एक आदर्श भारतीय बीवी बनने के लिए तैयार है। यहां तक कि इस मामले में खारिज की गई बिंदास, आत्मनिर्भर कन्या भी खुद को बदलने के लिए तैयार हो जाती है।
हालांकि यह एक फन मूवी है, लेकिन पात्रों के ऐसे चित्रण ने मुझे थोड़ा परेशान कर दिया। जब सफल, मजबूत इरादों वाली महिलाओं को अपने पति के लिए दाल-रोटी पकाने में ही मोक्ष तलाशते हुए दिखाया जाता है तो हम सोच में पड़ जाते हैं कि अपनी लड़कियों के लिए कैसा भारत पेश कर रहे हैं। क्या वास्तव में महिलाओं की बस यही जिंदगी है? क्या उनके लिए गरमागरम चपातियां बनाना ही सबसे अहम काम है? बेशक कई लोग यही कहेंगे कि मैं इसे लेकर इतना परेशान क्यों हो रहा हूं? आखिर यह एक बॉलीवुड फिल्म ही तो है।
दरअसल जब हमारा अत्याधुनिक फॉरवर्ड सिनेमा प्रतिगामी सोच में डूब जाए, तो यह हमारी महिलाओं के लिए ठीक नहीं है। यह इसलिए भी हताशाजनक है, क्योंकि कहीं न कहीं हम भी यह जानते हैं कि समाज में इस तरह का नजरिया मौजूद है। अनेक भारतीय पुरुष (यहां तक कि उच्च-शिक्षित भी) महिलाओं को दो नजरियों से तौलते हैं। उनके लिए एक गर्लफ्रेंड टाइप मटेरियल होती है, तो दूसरी बीवी टाइप। एक के साथ आप पार्टियों में मौज-मस्ती कर सकते हैं, दूसरी को आप घर ले जाते हैं। दृढ़ इरादों वाली गैर-पारंपरिक महिलाओं के प्रति उनके मन में जबरदस्त पूर्वग्रह हैं।
जरा हम दुनिया के दूसरे हिस्सों पर नजर दौड़ाएं। याहू जैसी अग्रणी तकनीकी फर्म और ‘फॉच्र्यून ५००’ कंपनी ने हाल ही में अपने यहां एक नए सीईओ को नियुक्त किया है। यह सीईओ एक महिला है। उनका नाम है मरीसा मेयर। गौरतलब बात यह है कि जब उन्हें नियुक्त किया गया, उस वक्त उन्हें छह माह का गर्भ था और उन्होंने अपने इंटरव्यू में यह बात छुपाई भी नहीं। मरीसा बच्चे की डिलीवरी के वक्त कुछ समय छुट्टी पर रहेंगी और उसके बाद वापस काम पर आ जाएंगी। वह दोनों चीजों को संभाल सकती हैं। यह बहुत खुशी की बात है। मरीसा महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल हैं तथा पुरुषों के लिए भी। मेरे ख्याल से वह किचन में चपातियां तो नहीं बनाती होंगी।
भारतीय पुरुषों को जीवनसाथी के चयन के बारे में अपनी मानसिकता को व्यापक बनाना चाहिए। वे सोलहवीं सदी से चले आ रहे अपने आदर्श महिला के मापदंडों में संशोधन करें। एक पारंपरिक घरेलू पत्नी का होना अच्छी बात है, जो आपके लिए खाना पकाए और घर के सारे काम करे। लेकिन जिंदगी में एक सक्षम, आत्मनिर्भर और कॅरियरोन्मुखी महिला के होने के भी बड़े फायदे हैं।
किसी कॅरियर वुमन के साथ शादी करने का पहला फायदा तो यह है इससे हमें ऐसा पार्टनर मिल जाता है, जिसके साथ हम अपने कॅरियर के बारे में राय-मशविरा कर सकते हैं। कामकाजी महिला किसी गृहिणी के मुकाबले संस्थागत मसलों को बेहतर ढंग से समझ सकती है। ऑफिस की राजनीति से दो-चार होने वाली आपकी अद्र्धांगिनी इसके बारे में आपको बेहतर सलाह दे सकती है। दूसरा फायदा, कामकाजी महिला पैसा कमाकर लाती है, जिससे परिवार के आय के स्रोत भी बढ़ जाते हैं। आज के महंगे अपार्टमेंट्स और अक्सर होने वाली छंटनी के इस दौर में कामकाजी पत्नी आपको एक अच्छा-सा आशियाना खरीदने में मदद कर सकती है और आप अपने वित्त को लेकर ज्यादा सुरक्षित महसूस कर सकते हैं। तीसरा, कामकाजी महिला को दुनियादारी के बारे में ज्यादा पता होता है। जब वह बाहर निकलती है तो इसका मतलब है कि वह वापस घर में कुछ ज्ञान और जानकारी लेकर आएगी, जो परिवार के लिए उपयोगी साबित हो सकती है। कोई हालिया डील हो, निवेश के लिहाज से बेहतरीन म्युचुअल फंड्स की बात, या फिर कोई घूमने जाने के लिए कोई नया ठिकाना- एक कामकाजी महिला इस तमाम मामलों में आपके जीवन में नया रंग भर सकती है। चौथा, कामकाजी महिलाओं के बच्चे भी आत्मनिर्भर होना सीखते हैं। उनकी मां हर छोटी-मोटी चीज के लिए उनके पास नहीं होती, लिहाजा बच्चे खुद चीजें संभालना सीख जाते हैं। आज के इस तीव्र प्रतिस्पद्र्धा के दौर में स्वावलंबी बच्चे नाजों में पलने वाले बच्चों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करेंगे। पांचवां, कामकाजी महिलाओं को जॉब करते हुए एक अलग तरह की तृप्ति का एहसास होता है। ऐसे में उनके जीवन में कहीं ज्यादा संतुष्टि हो सकती है और वे अपनी खुशियों के लिए पति पर ज्यादा निर्भर नहीं होंगी। इससे उनके बीच आपसी सामंजस्य भी बढ़ेगा। बेशक ये सभी फायदे मिल सकते हैं, बशर्ते आदमी अपने पहाड़ जैसे अहं को परे रख दे और महिलाओं को बराबरी का दर्जा दे।
निश्चित तौर पर कामकाजी महिला के साथ रहने की कुछ खामियां भी हैं, लेकिन आज हम जिस आधुनिक युग में रहते हैं, वहां पर चपातियां बनाने वाली दुल्हन लाने से हम उपरोक्त तमाम खूबियों से वंचित रह सकते हैं। मेरी मां ने चालीस साल तक काम किया। मेरी पत्नी एक अंतरराष्ट्रीय बैंक में सीओओ है। इससे मुझे गर्व की अनुभूति होती है। वह मेरे लिए चपातियां नहीं बनाती और मुझे इससे परेशानी भी नहीं है। यदि मेरी पत्नी किचन में अपनी पूरी जिंदगी बिता देती और अपनी प्रतिभा का समुचित इस्तेमाल नहीं करती, तो इससे मुझे कहीं ज्यादा परेशानी होती।
कृपया अपना जीवनसाथी सावधानीपूर्वक चुनें। अपने दिमाग के कपाट खोलें। हमारे मन में सफल महिलाओं को बर्दाश्त करने की भावना न हो, बल्कि हम उन्हें खुले मन से स्वीकारें और उनकी सफलता का जश्न मनाएं। वे हमारे घर-परिवार व हमारे देश को आगे लेकर जाएंगी। इससे हमें भले ही गरमागरम चपातियां कम मिलें, लेकिन एक बेहतर देश जरूर मिलेगा।
shabhar चेतन भगत
लेखक अंग्रेजी के प्रसिद्ध युवा उपन्यासकार हैं।
हाल ही में मैंने ‘कॉकटेल’ फिल्म देखी। इसका प्लॉट एक आशिक-आवारा टाइप के युवक के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसके समक्ष दो सेक्सी युवतियों में से किसी को चुननेे की मुश्किल चुनौती है। इस फिल्म की पृष्ठभूमि लंदन की है। इसके किरदार नाइटक्लब में झूमते-नाचते हैं, शराब पीते हैं और मौज-मस्ती करते हैं। वे ग्लैमर फोटोग्राफी, ग्राफिक आर्ट और सॉफ्टवेयर डिजाइनिंग जैसे आज के दौर के शानदार कॅरियर विकल्पों से जुड़े हैं। मगर फिर भी आखिर में नायक उसी लडक़ी को अपने लिए चुनता है, जो घर में खाना पकाती है, पारंपरिक परिधान पहनती है, उसकी मां की रजामंदी हासिल कर लेती है और खुशी-खुशी एक आदर्श भारतीय बीवी बनने के लिए तैयार है। यहां तक कि इस मामले में खारिज की गई बिंदास, आत्मनिर्भर कन्या भी खुद को बदलने के लिए तैयार हो जाती है।
हालांकि यह एक फन मूवी है, लेकिन पात्रों के ऐसे चित्रण ने मुझे थोड़ा परेशान कर दिया। जब सफल, मजबूत इरादों वाली महिलाओं को अपने पति के लिए दाल-रोटी पकाने में ही मोक्ष तलाशते हुए दिखाया जाता है तो हम सोच में पड़ जाते हैं कि अपनी लड़कियों के लिए कैसा भारत पेश कर रहे हैं। क्या वास्तव में महिलाओं की बस यही जिंदगी है? क्या उनके लिए गरमागरम चपातियां बनाना ही सबसे अहम काम है? बेशक कई लोग यही कहेंगे कि मैं इसे लेकर इतना परेशान क्यों हो रहा हूं? आखिर यह एक बॉलीवुड फिल्म ही तो है।
दरअसल जब हमारा अत्याधुनिक फॉरवर्ड सिनेमा प्रतिगामी सोच में डूब जाए, तो यह हमारी महिलाओं के लिए ठीक नहीं है। यह इसलिए भी हताशाजनक है, क्योंकि कहीं न कहीं हम भी यह जानते हैं कि समाज में इस तरह का नजरिया मौजूद है। अनेक भारतीय पुरुष (यहां तक कि उच्च-शिक्षित भी) महिलाओं को दो नजरियों से तौलते हैं। उनके लिए एक गर्लफ्रेंड टाइप मटेरियल होती है, तो दूसरी बीवी टाइप। एक के साथ आप पार्टियों में मौज-मस्ती कर सकते हैं, दूसरी को आप घर ले जाते हैं। दृढ़ इरादों वाली गैर-पारंपरिक महिलाओं के प्रति उनके मन में जबरदस्त पूर्वग्रह हैं।
जरा हम दुनिया के दूसरे हिस्सों पर नजर दौड़ाएं। याहू जैसी अग्रणी तकनीकी फर्म और ‘फॉच्र्यून ५००’ कंपनी ने हाल ही में अपने यहां एक नए सीईओ को नियुक्त किया है। यह सीईओ एक महिला है। उनका नाम है मरीसा मेयर। गौरतलब बात यह है कि जब उन्हें नियुक्त किया गया, उस वक्त उन्हें छह माह का गर्भ था और उन्होंने अपने इंटरव्यू में यह बात छुपाई भी नहीं। मरीसा बच्चे की डिलीवरी के वक्त कुछ समय छुट्टी पर रहेंगी और उसके बाद वापस काम पर आ जाएंगी। वह दोनों चीजों को संभाल सकती हैं। यह बहुत खुशी की बात है। मरीसा महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल हैं तथा पुरुषों के लिए भी। मेरे ख्याल से वह किचन में चपातियां तो नहीं बनाती होंगी।
भारतीय पुरुषों को जीवनसाथी के चयन के बारे में अपनी मानसिकता को व्यापक बनाना चाहिए। वे सोलहवीं सदी से चले आ रहे अपने आदर्श महिला के मापदंडों में संशोधन करें। एक पारंपरिक घरेलू पत्नी का होना अच्छी बात है, जो आपके लिए खाना पकाए और घर के सारे काम करे। लेकिन जिंदगी में एक सक्षम, आत्मनिर्भर और कॅरियरोन्मुखी महिला के होने के भी बड़े फायदे हैं।
किसी कॅरियर वुमन के साथ शादी करने का पहला फायदा तो यह है इससे हमें ऐसा पार्टनर मिल जाता है, जिसके साथ हम अपने कॅरियर के बारे में राय-मशविरा कर सकते हैं। कामकाजी महिला किसी गृहिणी के मुकाबले संस्थागत मसलों को बेहतर ढंग से समझ सकती है। ऑफिस की राजनीति से दो-चार होने वाली आपकी अद्र्धांगिनी इसके बारे में आपको बेहतर सलाह दे सकती है। दूसरा फायदा, कामकाजी महिला पैसा कमाकर लाती है, जिससे परिवार के आय के स्रोत भी बढ़ जाते हैं। आज के महंगे अपार्टमेंट्स और अक्सर होने वाली छंटनी के इस दौर में कामकाजी पत्नी आपको एक अच्छा-सा आशियाना खरीदने में मदद कर सकती है और आप अपने वित्त को लेकर ज्यादा सुरक्षित महसूस कर सकते हैं। तीसरा, कामकाजी महिला को दुनियादारी के बारे में ज्यादा पता होता है। जब वह बाहर निकलती है तो इसका मतलब है कि वह वापस घर में कुछ ज्ञान और जानकारी लेकर आएगी, जो परिवार के लिए उपयोगी साबित हो सकती है। कोई हालिया डील हो, निवेश के लिहाज से बेहतरीन म्युचुअल फंड्स की बात, या फिर कोई घूमने जाने के लिए कोई नया ठिकाना- एक कामकाजी महिला इस तमाम मामलों में आपके जीवन में नया रंग भर सकती है। चौथा, कामकाजी महिलाओं के बच्चे भी आत्मनिर्भर होना सीखते हैं। उनकी मां हर छोटी-मोटी चीज के लिए उनके पास नहीं होती, लिहाजा बच्चे खुद चीजें संभालना सीख जाते हैं। आज के इस तीव्र प्रतिस्पद्र्धा के दौर में स्वावलंबी बच्चे नाजों में पलने वाले बच्चों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करेंगे। पांचवां, कामकाजी महिलाओं को जॉब करते हुए एक अलग तरह की तृप्ति का एहसास होता है। ऐसे में उनके जीवन में कहीं ज्यादा संतुष्टि हो सकती है और वे अपनी खुशियों के लिए पति पर ज्यादा निर्भर नहीं होंगी। इससे उनके बीच आपसी सामंजस्य भी बढ़ेगा। बेशक ये सभी फायदे मिल सकते हैं, बशर्ते आदमी अपने पहाड़ जैसे अहं को परे रख दे और महिलाओं को बराबरी का दर्जा दे।
निश्चित तौर पर कामकाजी महिला के साथ रहने की कुछ खामियां भी हैं, लेकिन आज हम जिस आधुनिक युग में रहते हैं, वहां पर चपातियां बनाने वाली दुल्हन लाने से हम उपरोक्त तमाम खूबियों से वंचित रह सकते हैं। मेरी मां ने चालीस साल तक काम किया। मेरी पत्नी एक अंतरराष्ट्रीय बैंक में सीओओ है। इससे मुझे गर्व की अनुभूति होती है। वह मेरे लिए चपातियां नहीं बनाती और मुझे इससे परेशानी भी नहीं है। यदि मेरी पत्नी किचन में अपनी पूरी जिंदगी बिता देती और अपनी प्रतिभा का समुचित इस्तेमाल नहीं करती, तो इससे मुझे कहीं ज्यादा परेशानी होती।
कृपया अपना जीवनसाथी सावधानीपूर्वक चुनें। अपने दिमाग के कपाट खोलें। हमारे मन में सफल महिलाओं को बर्दाश्त करने की भावना न हो, बल्कि हम उन्हें खुले मन से स्वीकारें और उनकी सफलता का जश्न मनाएं। वे हमारे घर-परिवार व हमारे देश को आगे लेकर जाएंगी। इससे हमें भले ही गरमागरम चपातियां कम मिलें, लेकिन एक बेहतर देश जरूर मिलेगा।
shabhar चेतन भगत
लेखक अंग्रेजी के प्रसिद्ध युवा उपन्यासकार हैं।
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