Monday, August 18, 2008

पता नही कहा है मजिल

बहुत दिन से कोशिस kआर रहा हु की लाइफ मे कुछ अलग करने की. मगर हो नही पा रहा है समझ मे नही आ क्या करू। कभी भी सोचा हुआ कम नही हो पा रहा है ये मेरा बेड लक है या कुछ और। अब मे आज पर्ण कर रहा हू की जब तक अब जो मे सोच हू पुरा नही होगा तब तक किसी को नही बताऊंगा। बाजार की मांग क्या है पता है फिर भी कुछ नही कर पा रहा। लगा हू मंजिल की तलास मे पता नही कब मिलेगी.......

Tuesday, August 5, 2008

ऑनलाइन फ्रेंड

'मै तुम्हे देख नही सकता,
तुम्हे छू नही सकता,
लेकिन मुझे इस बात का
एहसास है कि तुम
इस वक्त मेरे साथ हो। '

साभार ग्रेसिबल मार्शल

ब्लॉग की दुनिया मे

ब्लॉग की दुनिया अब सिमित नही रही. अब सभी लोग जो ब्लॉग के बारे मे जानते है ओ अपना ब्लॉग बनाना चाहते है और अपनी लिखी हुई पंक्ति को ब्लॉग पर लगना चाहते है में भी उसी का नमूना हूँ अब में भी अपनी और दूसरो की लिखी हुई बात ब्लॉग पर डालूँगा अब आपकी मर्जी उसे आप उसे पढ़े या ना पढ़े ।
जीतेंद्र

Monday, August 4, 2008

या खुदा आहिस्ता आहिस्ता यह रात चले

देख लो जो जरा कि जज्बात चले।
लब खुलें जो तुम्हारे तो बात चले।

चांद भी है और मेरा महबूब भी।
या खुदा आहिस्ता आहिस्ता यह रात चले।

आज विरान हो गया यह शहर कल तक जो आबाद था।
देखो किस रफ्तार से ये बेरहम हालात चले।।

किसी से मिलना तो इतनी गुंजाईश जरूर रखना।
कुछ चले ना चले इक अदद मुलाकात चले।।

चांद की सैर करी, तारों को तोड लाया मैं।
बैठे बैठे दिमाग में क्या क्या ख्यालात चले।।

देख लो जो जरा कि जज्बात चले।
लब खुलें जो तुम्हारे तो बात चले।
साभार --- लफ्ज़
शायर -- अबरार अहमद