Monday, August 4, 2008

या खुदा आहिस्ता आहिस्ता यह रात चले

देख लो जो जरा कि जज्बात चले।
लब खुलें जो तुम्हारे तो बात चले।

चांद भी है और मेरा महबूब भी।
या खुदा आहिस्ता आहिस्ता यह रात चले।

आज विरान हो गया यह शहर कल तक जो आबाद था।
देखो किस रफ्तार से ये बेरहम हालात चले।।

किसी से मिलना तो इतनी गुंजाईश जरूर रखना।
कुछ चले ना चले इक अदद मुलाकात चले।।

चांद की सैर करी, तारों को तोड लाया मैं।
बैठे बैठे दिमाग में क्या क्या ख्यालात चले।।

देख लो जो जरा कि जज्बात चले।
लब खुलें जो तुम्हारे तो बात चले।
साभार --- लफ्ज़
शायर -- अबरार अहमद

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