हद से ज्यादा हुआ खुलापन
वर्तमान समय में आप न्यूज चैनल देख रहे हों, अखबार पलट रहे हों या किसी समूह में हों, हर जगह बस एक ही खबर, एक ही मुद्दा चर्चा में है, बलात्कार, बलात्कार, बलात्कार। बलात्कार की घटनाएं आज नयी नहीं है यह वर्षों पहले से होती आ रही है। मगर आज इसकी चपेट में वो मासूम बच्चियां आ रहीं हैं जिनको दुनिया में आए अभी चंद वर्ष ही हुए हैं। जिनकी आयु को आप अपनी हाथ की अंगुलियों पर गिन सकते हो। हम आप सब इस जघन्य अपराध की घोर निंदा करते हैं और दोषी को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग करते हैं।
दिल्ली, नोएडा, एनसीआर, यूपी, हरियाणा, बिहार, झारखंड, पंजाब सहित देश का अधिकतर राज्य इस इसकी चपेट में हैं। आखिर इतने विरोध के बावजूद आए दिन ऐसी घटनाओं में बढ़ोत्तरी ही क्यों होती जा रही है। हम सब मिलकर भी इस घिनौनी घटना को रोकने में असमर्थ क्यों दिख रहे हैं। हम लोगों से कहां चूक हो गई है जिसकी सजा इन मासूमों को भुगतनी पड़ रही है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम सब जान कर भी अनजान बने हुए हैं। भीड़ में शामिल होकर भी खुद को अलग मान रहे हैं। क्या जब हमारे साथ ऐसा कुछ होगा तभी हम समझेंगे? जिस देश में बालिकाओं को माता की तरह पूजा जाता है वहां अगर उनके साथ ऐसा हो रहा तो फिर...। यह आज समाज के लिए बड़ी चिंता की बात है। यह ऐसी चिंता है जो अब हमें अपनों पर भी विश्वास करने में शंका पैदा कर रही है।
आप देखेंगे कि आज के विज्ञापनों में बस एक ही चीज फोकस में है। और वो है हॉट लड़की। आप किसी भी प्रोडक्ट का विज्ञापन देख लीजिए, ज्यादातर में आपको लड़कियों को पटाने की बात होती है। क्रीम लगाओ तो लड़की पटेगी, डियोडरेंट लगाओ तो लड़की पटेगी, मंजन करो तो लड़की पटेगी। यूज का समान लड़कों का ही क्यों न हो मगर उस प्रोडक्ट को सामने लाने के लिए लड़कियों का ही सहारा लिया जा रहा है। आखिर ये दिखा कर ये कंपनियां अपना भला तो कर रही हैं मगर समाज को क्या संदेश दे रही हैं। क्या हमने कभी इस पर विचार किया है। हमारी मीडिया और समाज को आखिर क्या हो गया है? क्या जिंदगी का बस एक ही मकसद रह गया है 'लड़की पटाओ? ये सब देखकर हमारा समाज कहां जा रहा है?
आज समाज में युवा वर्ग पर उपभोक्तावादी संस्कृति हावी हो गई है। सीरियल्स/फिल्मों में आपत्तिजनक दृश्य बढ़े हैं। नाबालिग लड़के-लड़कियों पर पश्चिमी देशों का असर साफ दिख रहा है। उनमें छोटे उम्र में संबंध भी बन रहे हैं। स्कूल-कॉलेजों के समय में सुनसान जगहों पर जाने का प्रचलन बढ़ रहा है। कम उम्र में लड़कियां गर्भवती हो रही है। आत्महत्या की घटनाएं भी बढ़ गई हैं। ये सब समाज के पतन की ओर इशारा कर रहे हैं। अगर हम समय रहते नहीं चेते तो हमारा भविष्य और अंधकारमय होगा। शायद यह बताने की जरूरत नहीं होगी।
इस बात को समझने के लिए आपको ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। आप बस अपने आस-पास के पार्क, रेस्टोरेंट या ऐसी एकांत जगह चले जाइए, जहां आम लोगों का आना जाना तो होता हैं मगर एक खास समय पर। वहां पर आपको अपनी नजर दौड़ाने की जरूरत है फिर आपको किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
एक ऐसी ही आंखों देखी घटना का जिक्र मैं आपके साथ कर रहा हूं जिसका मकसद बस आज के समाज में होते बदलाव दिखाना है। कुछ दिन पहले मैं दुर्गापूर गया था इस दौरान मैं वहां एक पार्क में गया। वहां जो देखा उसे आपसे साझा कर रहा हूं। वहां की बातों को बताकर आपको बस एक बहस में शामिल करना चाहता हूं कि क्या ये जो हो रहा है वह सही है? और अगर सही नहीं है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? और इसपर रोक कौन लगाएगा?
आप देखेंगे कि आज के विज्ञापनों में बस एक ही चीज फोकस में है। और वो है हॉट लड़की। आप किसी भी प्रोडक्ट का विज्ञापन देख लीजिए, ज्यादातर में आपको लड़कियों को पटाने की बात होती है। क्रीम लगाओ तो लड़की पटेगी, डियोडरेंट लगाओ तो लड़की पटेगी, मंजन करो तो लड़की पटेगी। यूज का समान लड़कों का ही क्यों न हो मगर उस प्रोडक्ट को सामने लाने के लिए लड़कियों का ही सहारा लिया जा रहा है। आखिर ये दिखा कर ये कंपनियां अपना भला तो कर रही हैं मगर समाज को क्या संदेश दे रही हैं। क्या हमने कभी इस पर विचार किया है। हमारी मीडिया और समाज को आखिर क्या हो गया है? क्या जिंदगी का बस एक ही मकसद रह गया है 'लड़की पटाओ? ये सब देखकर हमारा समाज कहां जा रहा है?
आज समाज में युवा वर्ग पर उपभोक्तावादी संस्कृति हावी हो गई है। सीरियल्स/फिल्मों में आपत्तिजनक दृश्य बढ़े हैं। नाबालिग लड़के-लड़कियों पर पश्चिमी देशों का असर साफ दिख रहा है। उनमें छोटे उम्र में संबंध भी बन रहे हैं। स्कूल-कॉलेजों के समय में सुनसान जगहों पर जाने का प्रचलन बढ़ रहा है। कम उम्र में लड़कियां गर्भवती हो रही है। आत्महत्या की घटनाएं भी बढ़ गई हैं। ये सब समाज के पतन की ओर इशारा कर रहे हैं। अगर हम समय रहते नहीं चेते तो हमारा भविष्य और अंधकारमय होगा। शायद यह बताने की जरूरत नहीं होगी।
इस बात को समझने के लिए आपको ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। आप बस अपने आस-पास के पार्क, रेस्टोरेंट या ऐसी एकांत जगह चले जाइए, जहां आम लोगों का आना जाना तो होता हैं मगर एक खास समय पर। वहां पर आपको अपनी नजर दौड़ाने की जरूरत है फिर आपको किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
एक ऐसी ही आंखों देखी घटना का जिक्र मैं आपके साथ कर रहा हूं जिसका मकसद बस आज के समाज में होते बदलाव दिखाना है। कुछ दिन पहले मैं दुर्गापूर गया था इस दौरान मैं वहां एक पार्क में गया। वहां जो देखा उसे आपसे साझा कर रहा हूं। वहां की बातों को बताकर आपको बस एक बहस में शामिल करना चाहता हूं कि क्या ये जो हो रहा है वह सही है? और अगर सही नहीं है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? और इसपर रोक कौन लगाएगा?
समय- सुबह के 11 बजे
दिन- बुधवार
स्थान - दुर्गापूर
मैं पार्क में बड़े उत्साह से अंदर बढ़ रहा हूं। कुछ अंदर जाने पर पार्क की सुंदरता बढ़ती जा रही है। तरह-तरह के फूल और पौधे पार्क की सुंदरता को बढ़ा रहे हैं। पार्क के बीचों बीच एक तालाब है, जिसमें बोटिंग की सुविधा है। तालाब के किराने लगे अशोक के पेड़ और उनके नीचे लगी कुर्सियां। ज्यादातर कुर्सियों पर कपल बैठे नजर आ रहे हैं जो एक-दूसरे मैं ऐसे खोये हैं जैसे वो किसी पार्क में नहीं बल्कि किसी रूम में बैठे हों। एक-दूसरे को आलिंगन करते ये जोड़े उम्र में काफी कच्चे दिख रहे हैं। इनमें कुछ लड़कियां ऐसी भी हैं जो स्कूल ड्रेस में हैं और साथ में उनके स्कूल बैग भी है। यह, यह बताने के लिए काफी है कि ये स्कूल बंक करके यहां पहुंची हैं। तालाब किनारे बने सीढिय़ों पर भी कई कपल बैठे हैं। पार्क की दीवार से सटे बैठे कुछ जोड़े ऐसे हैं जिनकी हरकतें बयां करना उचित नहीं होगा। इसमें से कई छात्राएं ऐसी हैं जो अपने चेहरे को दुपट्टे से ढकी हुई हैं।
इस पार्क में कई झूले लगे हैं जो इस ओर इशारा करते हैं कि यहां पारिवारिक लोग भी आते हैं। मगर इस टाइम पर कोई परिवार या अभिभावक नहीं दिखें जो अपने बच्चे के साथ यहां आये हों। इस समय यहां का नजारा ऐसा है जो किसी सभ्य इंसान को शर्मसार कर दे। फूलों और पेड़ों के पीछे छिपे कई कपल ऐसे हैं जिनकी हरकतें देखकर ईष्या हो रही है। समाज की सारी मर्यादाओं को ताक पर रखने वाले इन जोड़ों को कोई पछतावा नहीं है। सब अपने में खोये हैं। इनमें कुछ तो ऐसे हैं जो खुलेआम बैठे ये सब कर रहे हैं।
मैं इन घटनाओं को आपके समक्ष रखकर बस यह पूछना चाहता हूं कि ये कहां तक सही है और आप इससे कहां तक सहमत हैं। आखिर स्कूल बंक कर पार्क में अपने प्रेमियों की बाहों में खोई इन लड़कियों को इस बात की जरा भी परवाह है कि कोई उन्हें उनकी पहचान का देख लेगा तो उसकी नजर में उनकी क्या पहचान बनेगी।
इतनी कम उम्र में इनकी इतनी खुली सोच और आजाद ख्यालात के लिए कौन जिम्मेदार है जो इन्हें यह सब करने की आजादी देता है। किसने इन पर ऐसा जादू कर दिया जो अपने आगे ये सबको बौना समझने लगे। ये ऐसे शख्स हैं जो अपनी हर छोटी-बड़ी जरूरत के लिए अपने अभिभावकों पर निर्भर हैं।