घर-बाहार
मेरा घर
मेरे घर के बाहर भी है
मेरा बाहर
मेरे घर के अंदर भी
घर को घर में
बाहर को बाहर ढूंढकर
मैंने पाया
मैं दोनों जगह नहीं हूं।
कहीं भी
कहीं भी जाओ
किसी और जगह की याद साथ चली आती है
किसी से भी मिलो
किसी और का चेहरा
किसी और की बातें याद आने लगती है
कोई भी बात करो
उसका सिरा कहीं और से जुडा होता है
कहीं के लिए चलो
कहीं और भटक जाने
वहां से लौटने पर
फिर कहीं और पहुंच जाने का खतरा बना रहता है
हमेशा कहीं और में कहीं और छिपा रहता है।
गलतियां
मेरे घर के बाहर भी है
मेरा बाहर
मेरे घर के अंदर भी
घर को घर में
बाहर को बाहर ढूंढकर
मैंने पाया
मैं दोनों जगह नहीं हूं।
कहीं भी
कहीं भी जाओ
किसी और जगह की याद साथ चली आती है
किसी से भी मिलो
किसी और का चेहरा
किसी और की बातें याद आने लगती है
कोई भी बात करो
उसका सिरा कहीं और से जुडा होता है
कहीं के लिए चलो
कहीं और भटक जाने
वहां से लौटने पर
फिर कहीं और पहुंच जाने का खतरा बना रहता है
हमेशा कहीं और में कहीं और छिपा रहता है।
गलतियां
गलतियां करना कभी बंद नहीं होता
और उन्हें ठीक करना भी
नई के साथ पुरानी गलतियां भी हम करते हैं
और हर गलती न ठीक को सकती है
और न हम ठीक कर पाते हैं, न करना चाहते हैं
कुछ गलतियां करके कम पछताते हैं
और कुछ गलतियां हम जानबूझकर करते हैं
जैसे किसी से यह कह देना कि यार मैं तुमसे प्रेम करता हूं
कुछ गलतियां के बारे में हमें कभी पता नहीं चलता
कई बार तो बताने पर भी हम यह जान नहीं पाते
बहरहाल मैं कसम खाता हूं कि जब तक जिंदा हूं गलतियां करता रहूंगा
अगर मैं अपनी किसी भी गलती के लिए
माफी न मांगू
तो समझना मैं हूं नहीं।
बोलने की आजादी भगवत रावत
आलोचना करना ही है तो
रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी
इटली आदि की करो
बुरा-भला कहना ही है तो
मार्क्स, लेलिन, गांधी, नेहरू, इंदिरा गांधी
आदि-आदि को कहो
गाली-गालौज करना ही है तो
ट्रेन के सफर में यात्रियों के बीच
मन चाहे जिसे गरियाओ
न उन्हें कुछ फर्क पडेगा
न तुम्हारा कुछ बिगडेगा
और यदि आप कोई लेखक या पत्रकार हैं
तो रोजी-रोटी भी चलती रहेगी ठाठ से
और विश्लेषक और चिंतक कहलाओगे
और इसी बहाने देश-विदेश भी
मुफ्त में घूम आओगे
लेकिन धोखे से भी अपने ही शहर में उग आए
तरह-तरह के नामधारी गुंडों के बारे में
कभी कुछ मत बोलना
जहां कहीं करते हो नौकरी
उसके मालिकों और अफसरों के बारे में कभी
मुंह मत खोलना
अपने ही राजा के सगे-संबंधियों के बारे में
न कुछ सुनना
न कुछ बोलना
धर्म के ध के पहले कभी
अ मत लगा बैठना
मजहब के म पर कभी कोई निगाह तक मत डालना
पता नहीं कब किसकी भावना आहत हो
और आपको घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गए
पता नहीं कब किसके सम्मान को चोट पहुंचे
और आपकी हस्ती मिट्टी में मिल जाए
पता नहीं कब किसी आंख में किरकिरी उठे
और आपकी आंखों की रोशनी चली जाए
पता नहीं कब।
आलोचना करने के लिए दुनिया-जहान है
तुम्हारे सामने
विरोध करने के लिए और कितने दूसरे मुद्दे हैं
चीखना चिल्लाना ही है
तो इस तरह
कि आवाज भरपूर हो लेकिन
किसी को कुछ समझ में न आए
हमारे लोकतंत्र में सबको बोलने की आजादी है।
No comments:
Post a Comment