Wednesday, December 10, 2008

शादी


हमने शादी की थी

हमने शादी की थी

सोचा था कि जब हमारे बच्चे हो जाएंगे

तो हम उन्हें गोद में खिलाएंगे

पीठ पर चढाएंगे

अपने पर मुत्ती कराएंगे

उन्हें गीत-कहानियां सुनाएंगे

कभी हम उन्हें डराएंगे कभी व हमें डराएंगे

फिर वे बडे और बडे होते जाएंगे

फिर वे हमारे मां-बाप जैसे हो जाएंगे

और हम उनके बच्चे जैसे कभी वे

कभी हम याद करके अपना बचपन कभी हंसने और कभी उदास होने लग जाएंगे

कभी हम उन्हें समझाएंगे जब वे काम पर जाएंगे

तो हमसे कह जाएंगे ये यहां रखा है और वो वहां ठीक से रहना

भूख लगे तो खाना गरम कर लेना हमें देर हो जाए तो घबराना मत

दवाई टाईम पर ले लेना और जरूरी हो तो हमें फोन कर लेना

और जब वे शाम को आएंगे हमें अच्छे बच्चे की तरह पाएंगे

तो उस तरह खुश हो जाएंगे जैसे हम कभी हो जाते थे

वे बाजार से लाई कोई चीज हमें खिलाएंगे

पूछेंगे कैसी है जब हम बेमन कहेंगे कि अच्छी है

तो कभी कुछ नहीं कहेंगे

कभी हमारा चेहरा देख मुस्कुराएंगे कहेंगे

मुझे मालूम है कि आपको तो बस एक ही मिठाई पसंद आती है
चलो कल वह लाएंगे
हम झूठ क्यों बोलें
हमने तो इसी दिन के लिए शादी की थी।
साभार विष्णु नागर की कविताएं

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