दिल्ली और गुडग़ांव के बीच 14.47 किलोमीटर लंबे कतुबमीनार-हुडा सिटी सेंटर मार्ग पर मेट्रो रेल का परिचालन सोमवार सुबह आरंभ हो गया। लोग लंबे समय से इस रूट के शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। कुतुबमीनार से हुडा सिटी सेंटर जाने वाले इस रेलखंड पर मेट्रो की पहली ट्रेन का परिचालन आठ बजे शुरू किया गया। इसी तरह हुडा सिटी सेंटर से कुतुबमीनार के लिए भी सुबह आठ बजे पहली मेट्रो ट्रेन को रवाना किया गया। इस रेखखंड को अगले एक महीने में केंद्रीय सचिवालय और फिर उत्तरी दिल्ली में जहांगीरपुरी से जोड़ा जाएगा। मेट्रो सेवा के शुभारंभ के समय दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) के कर्मचारियों और कुछ यात्रियों ने इस सेवा का लाभ उठाया। आम यात्रियों की भीड़ 11 बजे के आसपास जुटनी शुरू हुई। इस रेलखंड के 14.47 किलोमीटर लंबे मार्ग पर हालांकि अभी कुछ काम बाकी है और यही वजह है कि छतरपुर रेलवे स्टेशन पर फिलहाल ट्रेन नहीं रुकेगी। यहां अगस्त तक निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद ट्रेन रुकेगी। मेट्रो रेल निगम के प्रवक्ता ने कहा कि यहां निर्माण कार्य में देरी की वजह भूमि का विलंब से मिलना है। यहां अक्टूबर में भूमि मिल पाई थी। इस रेलखंड पर सुबह छह बजे से रात के 11 बजे तक 12 मिनट के अंतराल पर ट्रेन चलेगी। प्रवक्ता ने कहा कि शुरुआत में पांच ट्रेन सेवा में लगाई गई है और आगे इसे बढ़ाया जाएगा। इस रेलखंड को 11 जून को मेट्रो रेल के सुरक्षा आयुक्त ने ट्रेन परिचालन के लिए हरी झंडी दे दी थी। इस रेलखंड पर 10 स्टेशन हैं। इनमें हुडा सिटी सेंटर, इफको चौक, एमजी रोड, सिकंदरपुर, गुरु द्रोणाचार्य, अर्जनगढ़, घिटोरनी, सुल्तानपुर, छतरपुर और कुतुबमीनार। सप्ताह के पहले दिन सोमवार को यात्रियों की भीड़ कम थी। सोमवार दोपहर तक इस रूट पर करीब 12 हजार यात्रियों ने यात्रा की और एक लाख रुपये से अधिक के टिकट बेचे गए।
Monday, June 21, 2010
Friday, June 11, 2010
लगाइए फुटबॉल के महाकुंभ में डुबकी
फीफा विश्व कप-2010 शुरू हो गया है। एक महीने तक चलने वाले फुटबॉल के इस महाकुंभ का आगाज शुक्रवार को जोहांसबर्ग के सॉकर सिटी स्टेडियम में विधिवत, रंगारंग और शानदार उद्घाटन समारोह के साथ हुआ। इस मंजर को स्टेडियम में मौजूद 94,000 लोगों के अलावा दुनिया भर में साढ़े तीन अरब से अधिक लोगों ने टेलीविजन के माध्यम से देखा। इस बार फीफा ने दृष्टिहीनों की 'आंखÓ बनने और बधिरों का 'कानÓ बनने की भी व्यवस्था की है। लिहाजा यह विश्व कप इस वर्ग के लोगों को भी जोडऩे में सफल रहा। उद्घाटन समारोह के दौरान दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा और शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डेसमंड टुटु स्टेडियम में मौजूद थे। टुटु तो कार्यक्रम पेश कर रहे कलाकारों की धुन पर नाचते नजर आए।उद्घाटन समारोह से ठीक पहले सॉकर सिटी स्टेडियम के ऊपर लड़ाकू विमानों ने शानदार करतब दिखाए। सबसे पहले कलाकारों ने स्टेडियम के मध्य में नौ 'रेडियल लाइनÓ खींचे, जो नौ आयोजन स्थलों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके बाद स्टेडियम के अंदर स्टेडियम का विहंगम दृश्य पेश किया गया। उसके चारों और कलाकार नाचते नजर आए। इस नृत्य के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई कि विश्व कप सिर्फ खेल आयोजन नहीं बल्कि दोस्ती और भाईचारे का प्रचारक भी है। विश्व के सबसे लोकप्रिय खेल आयोजनों में एक माने जाने वाले विश्व कप में पांच महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व करने वाले 32 देश शिरकत कर रहे हैं। विश्व कप के अंतर्गत कुल 64 मैच खेले जाने हैं और इनका आयोजन नौ शहरों के 10 आयोजन स्थलों पर होना है। मौजूदा चैम्पियन इटली जहां खिताब की रक्षा के लिए मैदान में उतरेगा वहीं उसके अलावा इस बार चैम्पियन ब्राजील, इंग्लैंड, अर्जेटीना, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन को खिताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा है।
Thursday, June 3, 2010
आकर्षक दिखना पड़ा महंगा, गई नौकरी
कहते हैं अगर युवक/युवती सुंदर हो तो कामयाबी उनके कदम चुमती है। मगर आपको यह जानकार हैरानी होगी कि ज्यादा सुंदर दिखना ही जी का जंजाल बन गया। विश्व के सबसे बड़ी निजी बैंकों में शुमार सिटी बैंक की एक महिला कर्मी को सिर्फ इसलिए अपनी नौकरी गंवानी पड़ी क्योंकि सहकर्मियों के अनुसार वह 'बेहद आकर्षक और उत्तेजक दिखती है।Ó समाचार पत्र न्यूयार्क पोस्ट के मुताबिक बैंक ने डेब्राहिले लोरेन्जाना नाम की उस 30 वर्षीय महिला को सिर्फ इस वजह से नौकरी से निकाल दिया क्योंकि वह अपने सहकर्मियों का ध्यान भंग करती थी, जिसके कारण बैंक का दैनिक काम प्रभावित होता था। लोरेन्जाना ने सिटी बैंक के खिलाफ शारीरिक, मानसिक शोषण तथा लिंगभेद का मुकदमा दायर किया है। लोरेन्जाना का कहना है कि खुद को पेशेवर बताने वाले उनके सहकर्मियों की शिकायत पर बैंक के प्रबंधक और सहायक प्रबंधक ने उन्हें इस संबंध में पहले तो चेतावनी दी और फिर किसी दूसरे शहर में स्थानांतरित करने की धमकी दी। लोरेन्जाना ने इसकी परवाह नहीं की और किसी दूसरे शहर में जाने से भी इनकार कर दिया। इसके बाद बैंक प्रबंधक ने लोरेन्जाना को नए ग्राहक बना पाने में असमर्थ बताकर किसी दूसरे ब्रांच में स्थानांतरित कर दिया। दूसरे ब्रांच में भी यही हाल रहा और फिर एक दिन बैंक ने उसे नौकरी से निकाल दिया। लोरेन्जाना कहती हैं कि उनके सहकर्मी उन्हें अत्यधिक ध्यान भंग करने वाली कहते थे और उनकी इसी मानसिकता के कारण उन्हें अपनी 70 हजार डॉलर प्रति वर्ष की नौकरी से हाथ धोना पड़ा। लोरेन्जाना का आरोप है कि उसके सहकर्मी अपने काम पर नहीं बल्कि इस बात पर ज्यादा ध्यान देते थे कि वह किस तरह के कपड़े पहनती हैं। लोरेन्जाना ने कहा कि मेरे सहकर्मी कहा करते थे कि मैं पेंसिल स्कर्ट और टर्टल नेक्स में ज्यादा आकर्षक दिखती हूं, लिहाजा मुझे बुर्का पहनना चाहिए। सिटी बैंक ने लोरेन्जाना के आरोप को बेबुनियाद करार दिया है। बैंक ने अपने बयान में कहा है कि हम इन आरोपों को बेबुनियाद मानते हैं। हमारा कार्यस्थल सभी को बराबरी और सम्मान का अधिकार देता है। हम अपने कार्यस्थल पर भेदभाव और शोषण की संस्कृति को कभी बढ़ावा नहीं देते।
Wednesday, June 2, 2010
अब गांव में ही लें रेल टिकट
गांव वालों को अब ट्रेनों में आरक्षण कराने व रेल टिकट के लिए ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी। केन्द्र सरकार जल्द ही डाकघरों में टिकट बेचने के साथ- साथ रेलवे आरक्षण की सुविधा देने जा रही है। यह सुविधा शहरों, कस्बों के साथ गांवों के डाकघरों में भी उपलब्ध रहेगी। यह जानकारी केंद्रीय संचार राज्यमंत्री सचिन पायलट ने एक समाचार पत्र को विशेष बातचीत में दी। उन्होंने बताया कि इस बारे में रेल मंत्रालय से बातचीत की जा चुकी है। जल्द ही उन्हें डाकघरों की सूची दे दी जाएगी। सचिन ने कहा कि उनकी सरकार देशभर के पोस्ट ऑफिसों को प्रोजेक्ट रो के तहत आधुनिक सुविधाओं से लैस कर रही है। अब तक 500 जिलों के एक हजार पोस्ट ऑफिस आधुनिक किए जा चुके हैं। इस बार 500 और डाकघरों के लिए 250 करोड़ रुपए का बजट रखा गया। इसके लिए देश भर में सबसे ज्यादा राजस्थान के पोस्ट ऑफिसों को चुना गया है। उन्होंने बताया कि कंप्यूटर, बैंकिंग और इंटरनेट की सुविधा होने के बाद डाकघरों को रेलवे आरक्षण व टिकट बेचने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। सब कुछ ऑनलाइन रहेगा। गांव वालों को आरक्षण व टिकट के लिए शहर की तरफ भागना पड़ता था। डाकघरों में आरक्षण की सुविधा होने के बाद उन्हें स्टेशन तक नहीं दौडऩा पड़ेगा। नजदीकी पोस्ट ऑफिस में पहुंचकर वे आसानी से आरक्षण करा सकेंगे। सचिन ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में खोली गई ग्रामीण डाकघर जीवन बीमा योजना काफी कामयाब हो रही है। उनके संसदीय क्षेत्र अजमेर में एक लाख 20 हजार गरीब लोग अभी तक इस योजना का लाभ उठा चुके हैं। इसमें दैनिक मजदूरी करने वाला कोई भी व्यक्ति महिने में 20 से 30 रुपए जमा कर योजना का लाभ उठा सकता है।
Tuesday, June 1, 2010
टेलीविजन विज्ञापन देते हैं जंक फूड को बढ़ावा
यदि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो टेलीविजन विज्ञापनों को देखकर अपना भोजन तय न करें। एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि विज्ञापन देखकर खाना चुनने से खुराक बहुत असंतुलित हो जाती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि विज्ञापित भोजन की एक 2,000 कैलोरी की खुराक में शर्करा आवश्यकता से 25 गुना अधिक, वसा आवश्यकता से 20 गुना अधिक होता है लेकिन सब्जियों, डेरी उत्पादों और फलों की मात्रा जरूरत से केवल आधी ही मिल पाती है। वास्तव में इस तरह के भोजन से शरीर में शर्करा और वसा की मात्रा औसत से कहीं अधिक पहुंच जाती है। असल में शर्करा की मात्रा प्रतिदिन की अनुशंसित मात्रा से तीन गुना और वसा की मात्रा ढाई गुना अधिक मिलती है। आर्मस्ट्रांग अटलांटिक स्टेट युनीवर्सिटी (एएएसयू) के शोधकर्ता माइकल मिंक कहते हैं कि अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि टेलीविजन पर विज्ञापित भोजन लेने से बीमारियों को बढ़ाने वाले पदार्थ (संतृप्त वसा, कोलेस्ट्रॉल और सोडियम) शरीर में अधिक मात्रा में पहुंच जाते हैं और बीमारी से बचाने वाले पोषक तत्वों (रेशा, विटामिन ए, ई और डी, कैल्शियम और पोटैशियम) की कमी हो जाती है। शोधकर्ताओं ने 2004 में 28 दिन तक टेलीविजन पर प्रसारित विज्ञापित भोजन का विश्लेषण किया। शोधकर्ताओं ने प्रत्येक भोज्य पदार्थ में पोषक तत्वों की उपस्थिति का आकलन किया। इनमें से प्रत्येक भोजन में शर्करा, वसा, मांस की अत्यधिक मात्रा थी जबकि डेरी उत्पादों, फलों और सब्जियों की कमी थी। इसी तरह इनसे प्रोटीन, सेलीनियम, सोडियम, नियासिन, पूर्ण वसा, संतृप्त वसा, थियामिन और कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा मिल रही थी जबकि इनमें आयरन, फोसफोरस, विटामिन ए, कार्बोहाइड्रेट्स, कैल्शियम, विटामिन ई, मैग्नीशियम, कॉपर, पोटैशियम, पैंटोथीनिक एसिड, रेशे और विटामिन डी की कमी थी।
कभी अनुपस्थित नहीं हुआ
ब्रिटेन में एक किशोर ऐसा है जो बीते 12 वर्षों के दौरान एक भी दिन स्कूल में अनुपस्थित नहीं रहा। इस किशोर का नाम स्टीफन बूथ है। वह स्टोक-ऑन-ट्रेंट इलाके का रहने वाला है। उसने स्कूल में हाजिर होने का रिकार्ड कायम किया है। महत्वपूर्ण यह है कि वह छुट्टियों के दौरान ही हमेशा बीमार पड़ा। स्थानीय समाचार पत्र डेली मेल के अनुसार बूथ ने कहा कि मैं कभी बीमार नहीं पड़ा और कभी कमजोर महसूस नहीं किया कि मुझे छुट्टी की जरूरत पड़े। मुझे स्कूल जाना पसंद है और मैं अच्छा करना चाहता हूं। बूथ ने कहा कि कभी स्कूल में अनुपस्थित न रहने का मुझे गर्व है। मैं छुट्टियों के दौरान कई बार बीमार पड़ा हूं। यह मेरा सौभाग्य भी रहा है। उसकी मां कारेन कहती हैं कि स्टीफन में यह स्वाभाविक क्षमता है। उसे विज्ञान विषय बहुत पसंद है। वह सामान्य किशोर नहीं है। वह साढ़े छह बजे सोकर उठता है और स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाता है। वह स्कूल कभी भी देर से नहीं पहुंचा।
72 वर्षीय शख्स बनेगा 13वें बच्चे का बाप
ब्रिटेन में जुड़वा बच्चों के सबसे उम्रदराज पिता रिचर्ड रोडन एक बार फिर पिता बनने की तैयारी में हैं। 72 वर्षीय रोडेन की 26 वर्षीया पत्नी एक बार फिर गर्भवती हैं। रोडन इसे लेकर बेहद खुश हैं। रोडेन की इससे पहले भी दो शादियां हो चुकी हैं। दोनों पूर्व पत्नियों से रोडेन के 10 बच्चे हैं। तीसरे बच्चे के जन्म के बाद उनके बच्चों की कुल संख्या 13 हो जाएगी। रोडेन के सबसे बड़े बेटे की उम्र 52 वर्ष है। वेबसाइट सन के मुताबिक रोडेन की पत्नी लीजा को दो महीने का गर्भ है। यह उनका तीसरा बच्चा होगा। रोडेन ने कहा कि मैं बहत खुश हूं। मैं हमेशा कहता था कि हमारा एक और बच्चा पैदा होगा। रोडेन की पत्नी लीजा ने पिछले वर्ष जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था। उनके ये जुड़वां बच्चे बिना किसी प्रजनन इलाज के पैदा हुए थे। अब वे 16 महीने के हो चुके हैं। लीजा ने कहा कि मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि ये सब इतना जल्दी हो गया। इस बच्चे के पैदा होने के बाद हमारे पास तीन साल से कम के तीन बच्चे होंगे। रोडेन और लीजा पश्चिमी मिडलैंड के वालसाल में रहते हैं। यहां के स्थानीय लोग रोडेन को इन बच्चों का दादा समझ लेते हैं। रिचर्ड ने कहा कि 72 साल की उम्र में बच्चा पैदा करना 20 वर्ष की तुलना में काफी थका देने वाला होता है, लेकिन मैं बहुत खुश हूं। विश्व में जुड़वां बच्चों के सबसे उम्रदराज पिता होने का श्रेय अमरीका के टॉम लैम्बार्ट के नाम है। लैम्बार्ट 1948 में 78 वर्ष की उम्र में जुड़वां बच्चों के पिता बने थे।
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