Sunday, May 23, 2010
पसीना आना जरूरी, नहीं तो...
दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत में इन दिनों बढ़ रहे पारे और गर्मी से हीट स्ट्रोक की समस्या भी बढ़ रही है। गर्मी में लंबे समय तक मेहनत वाले काम करने वाले, बुजुर्ग और बीमार हीट स्ट्रोक के शिकार जल्दी होते हैं। अगर इस पर समय पर ध्यान न देने पर लोग 72 घंटे में जान गंवा सकते हैं। उपचार में देरी से मृत्यु की संभावना 80 फीसदी तक बढ़ सकती है। हीट स्ट्रोक की स्थिति तब होती है, जब तापमान 41 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक हो और पसीना न आए। हीट स्ट्रोक को धूप से थकान समझने की भूल कदापि न करें। हीट स्ट्रोक के दौरान मरीज को पसीना नहीं आता है। हीट स्ट्रोक में ऐंटी फीवर दवाएं पैरासिटामोल, एस्प्रिन और नॉन स्टीरायॅडल ऐंटी इन्फ्लेमैटरी कारगर नहीं होतीं। लिवर, ब्लड प्रेशर और गुर्दे की समस्या है तो ये दवाइयां नुकसान पहुंचा सकती हैं। तापमान कम करने के लिए क्लोरप्रोमौजीन पहले मुख्य उपचार के तौर पर इस्तेमाल होती थी। अब इससे परहेज किया जाता है। खुद ही ऐंटी एलर्जी और नाक बहने वाली दवाएं लेना हानिकारक साबित हो सकता है। हल्के तापमान को नजरंदाज न करें। ठंडक पहुंचाने के लिए अधिक से अधिक तरल पदार्थों का सेवन करें। मरीज को बहते हुए नल के नीचे नहलाना चाहिए, ना कि सिर्फ पानी लेकर हाथ या सिर को ठंडक पहुंचाएं। आइस मसाज से परहेज करना चाहिए।
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